Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 5

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Board – Central Board of Secondary Education, cbse.nic.in
Subject – CBSE Class 10 Hindi A
Year of Examination – 2019.

Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 5

हल सहित सामान्य
निर्देश :

• इस प्रश्न-पत्र में चार खण्ड है – क, ख, ग, घ |
• चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है ।।
• यथासंभव प्रत्येक खण्ड के क्रमशः उत्तर दीजिए |

खण्ड ‘क’ : अपठित बोध
1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
भारत के दक्षिणी भाग में से भूमध्य-रेखा गुजरती है, और इसके दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में खाड़ी बंगाल तथा पश्चिम में अरबसागर स्थित है, अत: यह मानसूनी पवनों का देश है। सागरों से उठी हुई पवनें उत्तर की ओर बढ़कर हिमालय की चोटियों से टकरा कर लगभग सारे देश में वर्षा करती हैं। मेरा देश प्राकृतिक दृष्टि से विविध मौसमों का पुंज है। एक ओर तो हिमालय की अनेक चोटियाँ वर्ष-भर बर्फ़ से ढकी रहती हैं और वहाँ सर्दी खूब पड़ती है, तो दूसरी ओर भूमध्य-रेखा के निकट होने के कारण मद्रास आदि प्रदेशों में इतनी गरमी पड़ती है कि लोग वहाँ शीत ऋतु में भी बहुत कम वस्त्र धारण करते हैं। मेरे देश में एक ओर चेरापूंजी में संसार-भर से अधिक वर्षा होती है, तो एक ओर राजस्थान का बहुत-सा भाग सूखा रहने के कारण मरुस्थल बना हुआ है। प्रकृति ने इस देश में गंगा, यमुना, सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब, झेलम, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा आदि अनेक बड़ी-बड़ी नदियों की बहाकर उसे शस्य-श्यामला बनाया है।
(i) भारत में वर्षा कराने में किसका महत्व पूर्ण योगदान है?
(ii) ‘चेरापूंजी’ की क्या विशेषता हैं?
(iii) भारत को किसका देश कहा गया है और क्यों?
(iv) भारत विविध मौसमों का पुंज कैसे है?
(v) भारत में बहने वाली प्रमुख नदियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
(i) सागर से उठी मानसूनी पवनों व हिमालय की चोटियों का भारत में वर्षा कराने में महत्वपूर्ण योगदान है।

(ii) चेरापूंजी भारत में स्थित एक जगह है जहाँ संसार भर से अधिक वर्षा होती है।

(iii) भारत को मानसूनी पवनों का देश कहा गया है क्योंकि भारत के दक्षिणी भाग से भूमध्य रेखा गुजरती है, इसके दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरबसागर स्थित है।

(iv) भारत में एक ओर तो हिमालय की अनेक चोटियाँ बर्फ से ढकी रहने से खूब सर्दी पड़ती है वहीं दूसरी ओर भूमध्य रेखा के निकट होने के कारण मद्रास आदि प्रदेशों में भीषण गर्मी पड़ती है। चेरापूंजी में जहाँ अत्यधिक वर्षा होती है वहीं राजस्थान में सूखा पड़ने से मरुस्थल भी बन गया है इसलिए भारत को विविध मौसमों का पुंज कहा है।

(v) भारत में बहने वाली प्रमुख नदियाँ गंगा, यमुना, सतलुज, व्यास, रावी, चिनाव, झेलम, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा आदि हैं।

2. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
क्या कुटिल व्यंग्य! दीनता वेदना से अधीर, आशा से जिनका नाम रात-दिन जपती है, दिल्ली के वे देवता रोज कहते जाते, ‘कुछ और धरो धीरज, किस्मत अब छपती है।’ किस्मतें रोज छप रहीं, मगर जलधार कहाँ? प्यासी हरियाली सूख रही है खेतों में, निर्धन का धन पी रहे लोभ के प्रेत छिपे, पानी विलीन होता जाता है रेतों में। हिल रहा देश कुत्सा के जिन आघातों से, वे नाद तुम्हें ही नहीं सुनाई पड़ते हैं? निर्माणों के प्रहरियो! तुम्हें ही चोरों के काले चेहरे क्या नहीं दिखाई पड़ते हैं? तो होश करो, दिल्ली के देवो, होश करो, सब दिन तो यह मोहिनी न चलने वाली है, होती जाती है गर्म दिशाओं की साँसें, मिट्टी फिर कोई आग उगलने वाली है।
(i) ‘दिल्ली के वे देवता’ किसे कहा गया है?
(ii) ‘गरीबो के प्रति कुटिल व्यंग्य’ से क्या आशय है?
(iii) निर्माण के प्रहरी किसकी अनदेखी करते है?
(iv) गरीबों की स्थिति में सुधार क्यों नहीं हो पा रहा है?
(v) कवि क्या चेतावनी दे रहा है?
उत्तर-
(i) शक्तिशाली शासकों को दिल्ली के देवता कहा गया है।

(ii) इस पंक्ति से आशय गरीबों के भाग्य पलटने हेतु दिए जाने वाले आश्वासन से है।

(iii) निर्माण के प्रहरी चोरों और भ्रष्टाचारियों की करतूतों की अनदेखी किया करते है।

(iv) गरीबों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ गरीबों तक नहीं पहुँच पा रहा है। सारा धन लोभी नेताओं अधिकारियों व ठेकेदारों के पास चला जाता है इसलिए गरीबों की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है।

(v) कवि शक्तिशाली शासकों को होश में आने की चेतावनी दे रहा है। अन्यथा गरीबों के द्वारा क्रांति लाकर परिवर्तन कर दिया जायेगा।

खण्ड ‘ख’ : व्याकरण
3. निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
(क) अंग्रेजी शासकों को उम्मीद थी कि दांडी यात्रा खुद ही कमजोर पड़कर खत्म हो जाएगी। (वाक्य का भेद लिखिए)
(ख) गाँधीजी ने नमक कर को साफ़-साफ़ अन्याय की तरह देखा था। (मिश्र वाक्य बनाइए)
(ग) भारत के सामने जो मुख्य समस्या है वह बढ़ती जनसंख्या है। (सरल वाक्य में बदलिए)
उत्तर-
(क) मिश्र वाक्य
(ख) गाँधीजी ने देखा था कि नमक कर साफ-साफ अन्याय है।
(ग) भारत के सामने मुख्य समस्या बढ़ती जनसंख्या है।

4. निर्देशानुसार वाच्य-परिवर्तन कीजिए-
(क) जुगल ने बच्चों को पढ़ाया है। (कर्मवाच्य में)
(ख) माँ से विदा होते समय राधा नहीं रोई।। (भाववाच्य में)
(ग) जयेन्द्र द्वारा संध्यावंदन किया गया। (कर्तृवाच्य में)
(घ) उससे साफ-साफ नहीं लिखा जाता। (कर्तृवाच्य में)
उत्तर-
(क) जुगल द्वारा बच्चों को पढ़ाया गया है।
(ख) माँ से विदा होते समय राधा से नहीं रोया गया।
(ग) जयेन्द्र ने संध्या वंदन किया। (घ) वह साफ-साफ नहीं लिखता।

5. निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित का पद-परिचय लिखिए-
(क) मैं कल देहरादून जाऊँगा।
(ख) पिछले साल भयंकर सूखा पड़ा था।
(ग) तुम्हारी पुस्तकें मैंने अलमारी में रख दी हैं।
(घ) हरीश की किताबें अस्त-व्यस्त रहती हैं।
उत्तर-
(क) मैं- सर्वनाम पुरुषवाचक, उत्तम पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक, ‘जाऊँगा” क्रिया का कर्ता।
(ख) साल- जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, अधिकरण कारक
(ग) तुम्हारी- सार्वनामिक विशेषण (मध्यम पुरुष), स्त्रीलिंग, बहुवचन, ‘पुस्तकें’विशेष्य।
(घ) किताबें- जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, बहुवचन, कर्ता कारक ‘रहती हैं। क्रिया का कर्ता।

6. (क) काव्यांश पढ़कर रस पहचानकर लिखिए:
(i) साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ में,
पूरा करूंगा कार्य सब कथनानुसार यथार्थ में।
जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैं अभी,
वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे सभी।
(ii) साथ दो बच्चे भी हैं, सदा हाथ फैलाए,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
(ख) (i) निम्नलिखित काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव हैं?
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै
(ii) श्रृंगार रस के स्थायी भाव का नाम लिखिए।
उत्तर-
(क)
(i) रौद्र रस
(ii) करुण रस
(ख)
(i) वात्सल्य
(ii) रति

7. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहनों को सुनकर मिली है। एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र में अनुभव की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने उकेरी है।
(क) अमीरुद्दीन को कब अत्यधिक प्रसन्नता मिलती थी?
(ख) बिस्मिल्ला खाँ को अपने आरम्भिक दिनों में संगीत के प्रति लगाव किससे मिला?
(ग) ठुमरी, दादरा क्या हैं?
उत्तर
(क) बिस्मिल्ला खाँ को बालाजी मन्दिर पर रोजाना नौबतखाने रियाज के लिए जाना पड़ता है। वे रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से जाते हैं। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। क्योंकि रसूलन और बतूलन के गाने से उन्हें अत्यधिक प्रसन्नता मिलती है।

(ख) अपने बहुत सारे साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरम्भिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहनों को सुनकर मिली है।

(ग) ठुमरी, दादरा गायन शैलियाँ हैं।

8. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए-
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुककर नेताजी की मूर्ति को क्यों निहारते थे?
(ख) फादर कामिल बुल्के की किस भाषा में विशेष रुचि एवं लगाव था? उस भाषा में उन्होंने कौन से कालजयी कार्य किये?
(ग) संस्कृति कब असंस्कृति हो जाती है और असंस्कृति से कैसे बचा जा सकता है?
(घ) कैसा आदमी निठल्ला नहीं बैठ सकता? ‘संस्कृति’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
(क) हालदार साहब के मन में देशभक्ति और प्रतिमा के प्रति लगाव था और साथ ही उनके मन में नेताजी की मूर्ति पर चश्मा देखने की उत्सुकता भरी लालसा रहती थी। इसलिए वे सदैव चौराहे पर रुककर नेताजी की मूर्ति को निहारते थे।

(ख) फादर कामिल बुल्के की हिन्दी भाषा में विशेष रुचि एवं लगाव था। हिन्दी के लिए वे समर्पित भाव से तल्लीन रहे। उन्होंने जेवियर्स कॉलेज के हिन्दी-संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रहते हुए शोधकार्य तथा अध्ययन किया। उन्होंने बाइबिल का हिन्दी अनुवाद किया, अंग्रेजी-हिन्दी कोश तैयार किया तथा ‘ब्लूबई” का अनुवाद ‘नील पंछी’ नाम से किया। ये हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु प्रेरित व उद्बोधित करते रहे।

(ग) • जब संस्कृति का कल्याण की भावना से संबंध टूट जाता है।
• मानव कल्याण के उद्देश्य को न भूलकर

(घ) • वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति
• भौतिक सुविधाएँ होने के बावजूद ज्ञान की इच्छा रखने वाला व्यक्ति

व्याख्यात्मक हल:
(ग) जब संस्कृति कल्याण-भावना से विमुख होकर मानव के अकल्याण और विनाश में सहायक बनेगी, तो वह असंस्कृति हो जाएगी।असंस्कृति का दुष्परिणाम होगा (असभ्यता, जिससे मानव समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा। मानव के अंदर काम करने वाली कल्याणकारी प्रेरणा, भावना, योग्यता व प्रवृत्तियों को जाग्रत कर उसे असंस्कृत होने से बचाया जा सकता है।

(घ) ऐसा व्यक्ति जो वास्तव में संस्कृत है निठल्ला नहीं बैठ सकता। जरूरत पूरी होने पर भी वह आन्तरिक स्वार्थ से ऊपर उठकर कुछ और जानने की जिज्ञासा व प्रेरणा रखता है।

9. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-
एक के नहीं,
दो के नहीं
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू,
एक के नहीं,
दो के नहीं
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा,
एक की नहीं
दो की नहीं,
हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म।
(क) “ढेर सारी नदियों के पानी का जादू” का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ख) कवि बार-बार कहता है ‘एक के नहीं, दो के नहीं, हजार-हजार के? कारण स्पष्ट कीजिए।
(ग) “हजार-हजार खेतों” का अर्थ स्पष्ट कीजिए और बताइए हजारों खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म किसके लिए सहायक होता है।
उत्तर
(क) फसल में एक नहीं सारे देश की अनेक नदियों का पानी जाता है तब अन्न का उत्पादन होता है।
(ख) यह बताने के लिए कि कृषक द्वारा उगाई गई फसल यों ही नहीं पक जाती, उसमें हजारों करोड़ों, हाथों, जल तथा अन्य तत्वों का योग होता है। यहाँ कवि अन्न के दाने का महत्व प्रतिपादित करते हैं।
(ग) अनेक एवं असंख्य खेत; ‘फसल’ के लिए मिट्टी आवश्यक है, जो जीवन के लिए अन्न देती है।

10. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए
(क) ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा । रही है?
(ख) कवि किस बात को विडंबना मानते हैं? इससे उनके किन गुणों का अभास मिलता है? ‘आत्मकथ्य’ कविता के आधार पर लिखिए।
(ग) लक्ष्मण ने परशूराम से किस प्रकार क्षमा-याचना की और क्यों?
(घ) संगतकार जैसे व्यक्ति की जीवन में क्या उपयोगिता होती है, स्पष्ट रूप से समझाइए।
उत्तर-
(क) कृष्ण के प्रति प्रेम के कारण गोपियों को विश्वास था कि कृष्ण भी उनके प्रति उसी प्रेम का व्यवहार करेंगे कितु कृष्ण ने प्रेम संदेश के स्थान पर योग-संदेश भेजकर प्रेम की मर्यादा को नहीं रखा।

(ख) कवि अपनी बातों को कहकर अपनी सरलता का उद्घाटन करना विडंबना मानते हैं क्योंकि सुनने व पढ़ने वाले उससे प्रसन्न न होकर, आलोचना ही करते हैं। कवि सरल, सच्चे मानव प्रतीत होते हैं। उनका कथन उचित है।

(ग) परशुराम को भूगुवंशी और ब्राह्मण जानकर क्षमा याचना। आप मारें तो भी आपके पैर ही पड़ना चाहिए। धनुष-बाण और कुठार तो आपके लिए व्यर्थ हैं।
व्याख्यात्मक हल :
लक्ष्मण ने कहा कि देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय-इन पर हमारे कुल में वीरता नहीं दिखाई जाती है। क्योंकि इन्हें मारने पर पाप लगता है और इन्हें हराने पर अपयश होता है। अत: आप मारें तो भी हमें आपके पैर ही पड़ना चाहिए। हे महामुनि! मैंने कुछ अनुचित कहा हो तो धैर्य धारण करके मुझे क्षमा करना।

(घ) संगतकार जैसे व्यक्ति स्वयं पृष्ठभूमि में रहकर मुख्य गायक को प्रसिद्धि यश दिलवाते हैं। ऐसे व्यक्ति गायन का श्रेय (या श्रम का श्रेय) स्वयं नहीं लेते अपितु जिनका वह साथ देते हैं, उन्हें ही प्रकाश में लाना उनका ध्येय होता है अत: ऐसे समर्पित व्यक्ति जीवन में बहुत उपयोगी माने जाते हैं।

11. ‘एही टैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ पाठ के शीर्षक की साथकता पर विचार कीजिए।
उत्तर-
‘एही टैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!”-लोकभाषा में रचित इस गीत के मुखड़े का शाब्दिक भाव है-इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंग खो गई है। इसका प्रतीकार्थ बड़ा गहरा है। नाक में पहना जाने वाला लौंग सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है। वह किसके नाम का लौंग अपने नाक में पहने। लेकिन मन रूपी नाक में उसने टुन्नू के नाम का लौंग पहन लिया है और जहाँ वह गा रही है; वहीं टुन्नू की हत्या की गई है। अतः दुलारी के कहने का भाव है-यही वह स्थान है जहाँ मेरा सुहाग लुट गया है।

खण्ड ‘घ’ : लेखन
12. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 200-250 शब्दों में निबंध लिखिए:
(क) विज्ञापन की दुनिया
• विज्ञापन का युग
• भ्रमजाल और जानकारी
• सामाजिक दायित्व
(ख) भ्रष्टाचार-मुक्त समाज
• भ्रष्टाचार क्या है।
• सामाजिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार
• कारण और निवारण
(ग) पी.वी. सिंधु – मेरी प्रिय खिलाड़ी
• अभ्यास और परिश्रम ।
• जुझारूपन और आत्मविश्वास
• धैर्य और जीत का सेहरा
उत्तर-
• प्रारम्भ और समापन
• विषय वस्तु
• प्रस्तुति और भाषा
व्याख्यात्मक हल :
(क)                                                                         विज्ञापन की दुनिया
आधुनिक युग प्रतियोगिता का युग है। उत्पादक को अपनी बनाई वस्तु की माँग उत्पन्न करना ही जरूरी नहीं होता, बल्कि वर्तमान को भी बनाए रखना उतना ही आवश्यक होता है। इन दोनों कार्यों के लिए वस्तु की उपस्थिति तथा उसके विभिन्न प्रयोग या उसकी उपयोगिता के विषय में उपभोक्ता को विज्ञापन द्वारा सूचित किया जाता है। विज्ञापन को यदि वर्तमान व्यापारिक संसार की रीढ़ कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।

आज जब हम अपने चारों ओर दृष्टि डालते हैं तो अपने आपको विज्ञापनों से घिरा पाते हैं। अन्य विज्ञापन साधनों की अपेक्षा दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले विज्ञापन विभिन्न प्रकार की विचित्रताएँ लिए दर्शकों को अपने मोह जाल से फंसा लेते हैं। वस्तुत: दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों का करिश्मा ही निराला है। रेडियो पर भी अनेक विज्ञापन प्रसारित होते हैं।

आप जहाँ जाएँ, वहाँ विज्ञापनों की ध्वनियाँ आपके कानों में टकराती रहेंगी। भले ही आप अपना रेडियो न चलाएँ, आप पान की दुकान पर खड़े हैं-रेडियो सुनाई देता है “पेश किया जाए मुगले-ए-आजम पान मसाला।” किसी पार्टी में विभिन्न प्रकार की। साड़ियों में सजी सुन्दर स्त्री को देखकर आप गुनगुना उटेंगे। ‘रूप-सँवारे रूप निखारे’कहियो अपने सैयां जी से, रूप की साड़ी – लाएँ, रूप का सागर। आप बस में जा रहे हैं-तभी किसी की जेब कट गई। आपको याद आता है-‘अरे, पकड़ो-पकड़ी, मेरी जेब कट गई, कटी नहीं फट गई। कहा था मुनीम धागे से सिलाई करवायें-पैसे गिर गये हों तो उठा लो न’ सड़क के चौराहे पर पहुँचे-“अरे-अरे देखकर नहीं चलते-क्या सड़क आपकी है-नहीं तो आपकी है-जेब्रा क्रॉसिंग पर पैदल पथ वाले को पहले चलने का हक है।”

अब तो दूरदर्शन विज्ञापन-बाजी में बाजी मार रहा है। विज्ञापन के नए-नए रूप इसमें दिखते हैं। निरमा, रिन, व्हील आदि अनेक धुलाई के पाउडर, अनेक प्रकार के साबुन, अनेक प्रकार की चाय, अनेक प्रकार की साड़ियाँ, जूते, चप्पल, मंजन, क्रीम, कडोम, आलू के चिप्स, शीतल पेय आदि के विज्ञापन गजब ढा रहे हैं। ये दर्शकों को मुग्ध करने के साथ ही उनकी जेब ढीली कराने में समर्थ हो रहे हैं।

जो भी विज्ञापन आकर्षक होता है, उसका नाम लोगों की जुबान पर चढ़ जाता है, जिससे विज्ञापित वस्तुओं की माँग में वृद्धि हो जाती है। इससे उत्पादक को लाभ होता
है।

रेडियो और दूरदर्शन द्वारा बहुत-सी वस्तुओं का विज्ञापन बढ़ा-चढ़ा कर दिया जाता है। जिससे उपभोक्ता भ्रम में पड़ जाता है। इसके साथ ही मनचाहे संगीत कार्यक्रम में हर गीत के बाद विज्ञापन मन को खिन्न कर देता है।
(ख)                                                                     भ्रष्टाचार मुक्त समाज
भ्रष्टाचार वह धीमा जहर है, जो सम्पूर्ण समाज को खोखला कर देता है। भ्रष्टाचार, स्वतन्त्रता, सभ्यता, संस्कृति और समाज को पतन की ओर ले जाता है। आज भ्रष्टाचार के कारण ही भारत जैसा विशाल देश भी उन्नति नहीं कर पा रहा है।

भ्रष्टाचार का अर्थ, भ्रष्ट + आचार अर्थात् भ्रष्ट आचरण अथवा अव्यावहारिक आचरण। भारत में भ्रष्टाचार विभिन्न रूपों में सामने आया है-सामाजिक, राजनैतिक यहाँ तक कि व्यक्तिगत जीवन भी इससे अछूता नहीं रहा है। पैसा कमाने के लिए टैक्स चोरी, तस्करी, रिश्वत, नकली माल बनाना, विकास के पैसों में हेराफेरी, गलत तरह की सौदेबाजी, कमीशनखोरी आदि भ्रष्टाचार के विभिन्न रूप हैं।

सामाजिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार के विविध रूप हैं जैसे-रिश्वत, सिफारिश, पक्षपात, तिकड़म, बेईमानी, मिलावट, कम नाप-तौल कर बेचना, जमाखोरी आदि; किन्तु आजकल यह रिश्वतखोरी का ही समानार्थी हो गया है। हमारे देश में आज सर्वत्र रिश्वत का ही बाजार गर्म है। आज अनुचित रूप से पैटर्न देकर अपनी इच्छानुसार कार्य कराया जा सकता है। यहाँ तक कि न्याय तक को भी खरीदा जा सकता है। जो व्यक्ति घूस देता है उसकी पाँचों अंगुलियां घी में रहती हैं। सफलता उसके इशारे पर नाचती हैं। सब प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करने के कारण इसको सुविधा शुल्क के नाम से विभूषित किया गया है।

भारत की सैकड़ों वर्षों की गुलामी को भ्रष्टाचार का मूल कारण कहा जा सकता है। ब्रिटिश समाज जब भारत पर शासन करने आया तो भ्रष्टाचार अपने साथ लाया था। भारत में सामाजिक एवं आर्थिक विषमता स्वतन्त्रता से पूर्व भी थी किन्तु स्वतन्त्रता के बाद जो नया आर्थिक मॉडल बना उसमें इस विषमता का भयावह रूप सामने आया। हमारे नेता आज तक कोई ऐसी ठोस योजना नहीं बना पाये, जिससे अधिकतम व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त हो सके। बढ़ती हुई बेरोजगारी विभिन्न प्रकार के संकट पैदा कर रही है। मझोले और छोटे वर्गों के बीच आर्थिक असुरक्षा का बोध उन्हें अत्यधिक धन कमाने की प्रवृत्ति की ओर ले जाता है। उपभोक्तावादी जीवनशैली समाज में अभिशाप के रूप में सामने आ रही है जिसमें प्रदर्शन की तीव्र लालसा है। किसी भी तरह से पैसा कमाना आवश्यक होता जा रहा है। नई-नई वस्तुओं को प्राप्त करने की अंधी दौड़ जारी है, जो समाज में भ्रष्टाचार को जन्म दे रही है।

भारत में आज भ्रष्टाचार अपनी जड़ें इतनी गहरी जमा चुका है कि उससे निपटने के लिए कई मोर्चे पर लड़ाई लड़नी आवश्यक है। ईमानदार व्यक्तियों को प्रोत्साहित करना एवं भ्रष्ट आचरण वाले व्यक्तियों को हतोत्साहित करना, भ्रष्टाचार के लिए कठोर कानून बनाना एवं भ्रष्टाचार को दण्डित करना, अति आवश्यक है। नैतिक शिक्षा का व्यापक प्रचार कर सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचारी व्यक्ति की निन्दा की जानी चाहिए।

भ्रष्टाचार समाप्ति की लड़ाई समाज की अन्य सारी बुराइयों के साथ ही लड़ी जा सकती है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं को ईमानदार बनाना होगा व सरकार को भी भ्रष्टाचारियों के लिए कठोर कानून बनाने होंगे, तभी हमारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो पाएगा।

(ग)                                                                पी. वी. सिंधु-मेरी प्रिय खिलाड़ी
जीवन के प्रत्येक कार्य को खेल मानकर हार-जीत की चिंता किए बिना महज खेलते जाने में ही नश्वर जीवन की सार्थकता है इस उक्ति को सत्य सिद्ध किया मेरी प्रिय खिलाड़ी पी.वी. सिंधु ने।।

पी. वी. सिंधु एक विश्व वरीयता प्राप्त भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी है। इनका पूरा नाम पुसरला वेकट सिंधु है। इनका जन्म 5 जुलाई, 1995 को आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुआ। वे भारतीय जाट परिवार से सम्बन्ध रखती हैं।

पी. वी. सिंधु के पिता का नाम पी. वी. रमण और माता का नाम पी. विजया है। सिंधु के माता-पिता पेशेवर वॉलीबॉल खिलाड़ी थे। उनके पिता को वॉलीबाल खेल में उल्लेखनीय खेल प्रदर्शन हेतु वर्ष 2000 में भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया गया।

सिंधु ने 2001 के ऑल इंग्लैण्ड ओपन बैडमिंटन चैंपियन बने पुलेला गोपीचंद से प्रभावित होकर बैडमिंटन को अपना करियर चुना और सिर्फ आठ वर्ष की उम्र से बैडमिंटन खेलना प्रारंभ कर दिया। सिंधु ने सर्वप्रथम सिकन्दराबाद इंडियन रेलवे सिंगल

इंजीनियरिंग और दूर-संचार के बैडमिंटन कोर्ट में मेहबूब अली के मार्गदर्शन में बैडमिंटन की बुनियादी बातों को सीखा उसके बाद वे पुलेला गोपीचंद के गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी में शामिल हो गई।

अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में सिंधु कोलंबों में आयोजित 2009 सब जूनियर एशियाई बैडमिंटन चैम्पियनशिप में कांस्य पदक विजेता रहीं, उसके बाद सिंधु ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, उन्होंने 2012 में चीन ओपन बैडमिंटन सुपर सीरीज टूर्नामेंट में लंदन ओलम्पिक 2012 के स्वर्ण पदक विजेता चीन के ली. जुएराऊ को 9-21, 21-16 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया। वे भारत की पहली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिन्होंने चीन के ग्वांग्झू में आयोजित 2013 के विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में एकल पदक जीता ।

भारत की इस उभरती हुई जुझारू बैडमिंटन खिलाड़ी ने अपना शानदार प्रदर्शन जारी रखते हुए कई खिताब जीते। सिंधु ने ब्राजील के रियोडि जेनेरियो में आयोजित किये गये, 2016 के ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और महिला एकल स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली महिला बनी। उन्होंने खेल का अच्छा प्रदर्शन किया पर उन्हें रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है।

2013 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें तेलंगाना सरकार, हरियाणा सरकार मध्य प्रदेश सरकार तथा खेल मंत्रालयों द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। अन्त में हम यह कह सकते हैं, कि आज समूचे देश को पी. वी. सिंधु जैसी खिलाड़ी की उपलब्धियों पर गर्व है।

13. ग्रीष्मावकाश में आपके पर्वतीय मित्र ने आपको आमंत्रित कर अनेक दर्शनीय स्थलों की सैर कराई। इसके लिए उसका आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद पत्र । लिखिए।
उत्तर-

मित्र को धन्यवाद पत्र

राजेश मानव
534, गाँधीनगर
भोपाल
दिनांक- 15/6/20x x
प्रिय मित्र शैलेश,
नमस्कार !
आशा है तुम सकुशल होंगे। मैं नैनीताल से दिल्ली होते हुए कल सुबह पहुँच गया था। प्रिय शैलेश! मुझे तुम्हारे घर में बिताए हुए ये दिन कभी नहीं भूलेंगे। तुमने मुझे। नैनीताल की झील के साथ-साथ लवर प्वांइट, टिफिनी टॉप, चिड़ियाघर, चाझा टॉप, लैड-एण्ड स्नो प्वांइट, कौसानी आदि स्थल दिखाए। ये स्थल मेरी स्मृति में सदा-सदा के लिए अंकित हो गए हैं। मैं जब भी इन्हें याद करूंगा, तुम्हारी स्मृति मेरे साथ रहेगी। तुमने मेरा खूब आतिथ्य किया तथा पूरे मनोयोग से एक-एक दर्शनीय स्थल दिखाया। इसके लिए मैं तुम्हारा आभारी रहूँगा।

अब भोपाल आने की तुम्हारी बारी है। मैं तुम्हारे आगमन की व्यग्रता से प्रतीक्षा करूंगा।
तुम्हारा राजेश।

14. किसी शीतल पेय की ब्रिक्री बढ़ाने वाला एक विज्ञापन तैयार कीजिए। (25-50 शब्दों में)
उत्तर-
CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Solved Set 5 14

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