चुनौती हिमालय की Summary Class 5 Hindi

चुनौती हिमालय की Summary Class 5 Hindi

चुनौती हिमालय की पाठ का सारांश

एकबार जवाहरलाल नेहरू अपने चचेरे भाई के साथ कश्मीर घूमने निकले थे और जोज़ीला पास से होकर लद्दाखी इलाके की ओर चले आए थे। उन्हें अमरनाथ जाना था। किशन गड़ेरिया ने उन्हें रास्ते की मुश्किलों के बारे में बताया लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ। मुश्किलों के बारे में सुनकर सफर के लिए वे और भी उत्सुक हो गए। उनके साथ कुली तो था ही, किशन और उसकी बेटी भी उसके साथ जाने को तैयार हो गई।

अगले दिन सुबह-सुबह जवाहरलाल नेहरू तैयार होकर बाहर आ गए। तिब्बती पठार का दृश्य निराला था। दूर-दूर तक वनस्पति रहित उजाड़ चट्टानी इलाका दिखाई दे रहा था। सर्द हवा के झोंके हड्डियों तक ठंडक पहुँचा रहे थे।

जवाहरलाल जी ने हथेलियाँ आपस में रगड़कर गरम कीं और कमर में रस्सी लपेटकर चलने को तैयार हो गए। हिमालय की दुर्गम पर्वतमाला एक बड़ी चुनौती थी जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। किशन गड़ेरिया उनका गाइड बन गया। जवाहरलाल ने आठ मील की चढ़ाई चढ़नी शुरू कर दी। आठ मील की दूरी कोई बहुत नहीं होती, लेकिन इन पहाड़ी रास्तों पर आठ कदम चलना मुश्किल लगने लगा। रास्ता सुनसान था। चारों तरफ बस पथरीली चट्टानें और सफेद बर्फ दिख रहे थे। जवाहरलाल बढ़ते जा रहे थे। ज्यों-ज्यों ऊपर चढ़ते गए, त्यों-त्यों साँस लेने में दिक्कत होने लगी। कुली के नाक से खून बहने लगा। जल्दी से जवाहरलाल ने उसका उपचार किया। थोड़ी देर में बर्फ पड़ने लगी और फिसलन बढ़ गई। चलना दुभर होने लगा। थकान से अलग बुरा हाल हो रहा था। तभी सामने बर्फीला मैदान नजर आया जो शीघ्र ही बर्फ के धुंधलके में ओझल हो गई।

सुबह चार बजे से चढ़ाई करते-करते दिन के बारह बजे तक वे लगभग सोलह हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर आ गए। किन्तु अभी भी अमरनाथ की गुफा का कुछ पता नहीं चल पा रहा था।

जवाहरलाल अपने बुलंद इरादों के साथ हिमालय को चुनौती देते हुए दुर्गम पथ पार करने में जुटे थे। कुली ने उन्हें वापस कैंप में चलने की सलाह दी। लेकिन जवाहरलाल लौटने के बारे में जरा भी सोच नहीं सकते थे। उन्हें अमरनाथ पहुँचना था। तभी किशन ने बताया कि अमरनाथ की गुफा तो दूर बर्फ के मैदान के पार है। फिर तो जवाहरलाल में और भी जोश आ गया। वे फुर्ती से बढ़ने लगे। आगे उन्हें गहरी खाइयाँ, बर्फ से ढंके गड्ढे और फिसलन मिली। कभी पैर फिसलता तो कभी बर्फ में पैर अंदर पॅसता जाता। चढ़ाई मुश्किल थी लेकिन जवाहरलाल को इसमें मजा आ रहा था। अचानक उन्हें एक बड़ी गहरी खाई दिखी। इसके पहले कि वे अपने को सँभालते, लड़खड़ाकर खाई में गिर पड़े। रस्सी से बँधे वे हवा में लटकने लगे। रस्सी ही उनका एकमात्र सहारा था जिसे वे कसकर पकड़े थे। साथ के लोगों ने रस्सी खींचकर उन्हें बाहर निकालने की बात सोची। लेकिन जवाहरलाल ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। उन्होंने खाई की दीवार से उभरी चट्टान को मजबूती से पकड़ लिया और पथरीले धरातल पर पैर जमा लिए। पैरों तले धरती के एहसास से जवाहरलाल की हिम्मत बढ़ गई। फिर स्वयं के प्रयास और कुली एवं किशन के सहयोग से वे किसी तरह ऊपर पहुँच गए। कपड़े झाड़कर वे फिर चलने को तैयार हो गए। लेकिन आगे गहरी और चौड़ी खाइयों की संख्या बहुत थी। खाइयाँ पार करने का उचित सामान भी किसी के पास न था। इस कारण जवाहरलाल को अमरनाथ तक का सफर अधूरा छोड़कर वापस लौटना पड़ा।

शब्दार्थः दृष्टि-नज़र। निराला-सुन्दर । स्पर्श-छूना। गाइड-रास्ता बताने वाला । दूभर–मुश्किल । वीरान-सुनसान। सुकून-अच्छा एहसास। स्फूर्ती-तेजी। उपचार-इलाज। इरादा-इच्छा। हिम-बर्फ। शिखर-चोटी। मुकुट-ताज । ओझल-आँखों से दूर हो जाना। दुर्गम-कठिन। ढल जाएगा-बीत जाएगा। हिदायत-चेतावनी। तादाद-संख्या।

Class 5 Hindi Notes