The Last Lesson Summary In English
Franz started for school very late that morning. He was afraid of being scolded because M. Hamel was to question them on participles, and he did not know the first word about them. He thought of running away and spending the day out of doors. The warm bright day, the chirping birds, and the Prussian soldiers drilling in the open field back of the sawmill were tempting. But he resisted the temptation and hurried off to school.
There was a crowd in front of the bulletin-board near the town-hall. Wachter, the blacksmith asked Franz not to go so fast. He assured the boy that he would get to his school in plenty of time. Usually there was a great bustle when the school began but that day everything was as quiet as Sunday morning.
Through the window Franz saw his classmates, already in their places and M. Hamel walking up and down with his terrible iron ruler under his arm. Franz opened the door and went in. He blushed and was frightened. M. Hamel very kindly asked him to go to his place.
Franz noticed that their teacher had put on his beautiful green coat, his frilled shirt, and the little black silk cap, all embroidered. He wore these only on inspection and prize days. The village people were sitting quietly on the usually empty back benches. Everybody looked sad; and Hauser had brought an old primer.
M. Hamel said that it was the last lesson he would give them. Henceforth, only German was to be taught in the schools of Alsace and Lorraine. The new master would come the next day. This was their last lesson of French. He wanted them to be very attentive.
Franz felt sorry that he had not learnt his lessons properly. The idea that M. Hamel was going away made the narrator forget all about his ruler and how cranky he was. Now Franz understood why M. Hamel had put on his fine Sunday clothes and why the old men of the village were sitting there. They had come to thank the master for his forty years’ faithful service and to show their respect for the country that was theirs no more.
M. Hamel asked Franz to recite, but he stood there silent. The teacher did not scold him. He confessed that his parents and he (the teacher) were at fault. Then he talked of the French language-the most beautiful language in the world—the clearest, the most logical. He asked them to guard it among them and never forget it. Their language was the key to their prison.
Then they had lesson in grammar and writing. The pigeons cooed very low on the roof. Franz thought if they would make even the pigeons sing in German. All the while M. Hamel was sitting motionless in his chair and gazing at one thing or the other. His sister was packing their trunks in the room above as they had to leave the country next day.
After writing, they had a lesson in history, and then the babies chanted their ba, be, bi, bo, bu. Even old Hauser was crying. All at once the church-clock struck twelve and then the midday prayers. At the same moment the trumpets of the Prussians, returning from drill, sounded under the windows. M. Hamel stood up. He wanted to speak but something choked him.
Then he took a piece of chalk and wrote on the blackboard as large as he could “Vive La France!” After this he stopped and leaned his head against the wall. Without a word, he made a gesture with his hand to indicate that the school was dismissed and they might go.
The Last Lesson Summary In Hindi
उस प्रात:काल फ्रेन्ज विद्यालय के लिए बहुत देर से चला। उसे धमकाये जाने का भय था क्योंकि मि० हैमल उनसे Participles के विषय में प्रश्न पूछने वाले थे, जबकि वह उसके विषय में पहला अक्षर भी नहीं जानता था। उसने भाग जाने तथा खुले में दिन व्यतीत करने की सोची। गर्म, चमकीला दिन, चहचहाते हुए पक्षी तथा आरा मशीन के पिछवाड़े खुले खेतों में अभ्यास करते हुए प्रशिया के सैनिक, प्रलोभित करने वाले थे। किन्तु उसने प्रलोभन को दबाया तथा शीघ्रता से विद्यालय की ओर चला गया।
टाउन हॉल के समीप सूचना-पट्ट के सामने भीड़ थी। लोहार वैचर ने फ्रेन्ज को इतनी तीव्रता से न जाने को कहा। उसने बालक को विश्वास दिलाया कि वह अपने विद्यालय में समय से पहले पहुँच जाएगा। प्रायः विद्यालय आरम्भ होने के समय काफी कोलाहल होता था किन्तु उस दिन प्रत्येक चीज़ ऐसे शान्त थी जैसे कि रविवार को प्रात:काल हो।
खिड़की से फ्रेन्ज ने देखा कि उसके सहठी पहले ही अपने-अपने स्थान पर थे तथा मि० हैमल अपने बाजू के नीचे लोहे का अपना भयंकर पैमाना (लकीर खींचने की पटरी) रखे इधर-उधर घूम रहे थे। फ्रेन्ज ने द्वार खोला तथा भीतर चला गया। शर्म से उसके चेहरे पर लालिमा आ रही थी तथा वह भयभीत था। मि० हैमल ने अत्यन्त दया भाव से उसे अपने स्थान पर जाने को कहा।
फ्रेन्ज ने ध्यान से देखा कि उनके अध्यापक ने अपना सुन्दर हरा कोट, झालरदार कमीज तथा छोटी काली रेशमी टोपी पहनी हुई थी। इन सबपर कसीदा कढ़ा हुआ था। वह इन्हें निरीक्षण अथवा पारितोषिक वितरण के दिन पहनते थे। ग्रामीण लोग चुपचाप प्रायः खाली रहने वाली पीछे की सीटों पर बैठे हुए थे। प्रत्येक व्यक्ति दु:खी दिखाई देता था। वृद्ध हॉसर तो एक पुरानी प्रवेशिका (वर्णमाला की बच्चों की पुस्तिका) भी ले आया था।
मि० हैमल ने कहा कि यह अन्तिम पाठ था जो वह उन्हें पढ़ायेगा। इसके पश्चात Alsace तथा Lorrain के विद्यालयों में केवल जर्मन भाषा ही पढ़ाई जायेगी। नया अध्यापक अगले दिन आ जायेगा। यह उनका फ्रांसीसी भाषा का अन्तिम पाठ था। वह चाहता था कि वे अत्यन्त ध्यानपूर्वक रहें।
फ्रन्ज को अफसोस (खेद) हुआ कि उसने अपना पाठ उचित ढंग से याद नहीं किया था। मि० हैमल के जाने की खबर से वर्णनकर्ता यह भूल गया कि उनका पैमाना (पट्टी) और वे (मिस्टर हैमल) कितने क्रूर हैं। अब फ्रेन्ज की समझ में आया कि मि० हैमल ने अपनी सर्वश्रेष्ठ (रविवासरीय) पोशाक क्यों पहनी हुई थी और गाँव के वृद्ध लोग वहाँ क्यों बैठे हुए थे। वे अध्यापक की चालीस वर्ष की स्वामीभक्ति पूर्ण सेवा के लिए उनका धन्यवाद करने तथा उस देश के प्रति सम्मान प्रकट करने आए थे जो अब उनका नहीं था।
मि० हैमल ने फ्रेन्ज को सस्वर गाने को कहा, किन्तु वह वहाँ चुपचाप खड़ा रहा। अध्यापक ने उसे नहीं धमकाया। उसने स्वीकार किया कि स्वयं वह (अध्यापक) तथा फ्रेन्ज के माता-पिता दोषी थे। फिर उसने फ्रांसीसी भाषा के विषय में बातें की कि यह संसार की सबसे सुन्दर भाषा, सबसे साफ एवं अत्यधिक तर्कपूर्ण है। उसने हमें कहा कि अपने बीच इसकी रक्षा करें तथा कभी न भूलें । उनकी भाषा उनके कारावास की कुंजी थी।
फिर उन्हें व्याकरण तथा लेखन के पाठ मिले। छत पर कबूतर बहुत धीमे गुटरगूं कर रहे थे। फ्रेन्ज सोचने लगा कि क्या वे कबूतरों को भी जर्मन भाषा में गाना गवायेंगे। इस पूरे समय मि० हैमल कुर्सी पर गतिहीन बैठे हुए किसी न किसी वस्तु को देखते रहे। उनकी बहन ऊपर वाले कमरे में ट्रंकों में अपना सामान लगा रही थी क्योंकि उन्हें अगले दिन देश छोड़कर जाना था।
लेखन के पश्चात, उनका इतिहास का पाठ था, तथा फिर बच्चों ने मंत्र की भाँति उच्चारित किया—बा, बे, बी, बो, बु। वृद्ध हॉसर भी रो रहा था। अचानक गिरजाघर के घंटे ने बारह बजाये तब दोपहर की प्रार्थना हुई। उस क्षण प्रशिया के सैनिकों के सैन्य अभ्यास से लौटने की तुरही की ध्वनि खिड़कियों के नीचे से आई। मि० हैमल खड़ा हो गया। वह बोलना चाहता था किन्तु किसी चीज़ से उसका गला सँध गया।
फिर उन्होंने चॉक का एक टुकड़ा उठाया तथा, जितने बड़े अक्षरों में वह लिख सकता था, उसने श्यामपट पर लिखा “फ्रांस अमर रहे।” इसके पश्चात् वह रुक गया तथा दीवार के साथ अपना सिर झुका लिया। बिना कोई शब्द बोले उसने हाथ से ही यह इंगित करने की मुद्रा बनाई कि विद्यालय की छुट्टी हो गई थी तथा वे जा सकते थे।