Childwood Summary In English
The poet seems puzzled about the loss of childhood. It is natural in the process of growing up. Still, the poet tries to find an answer to his two queries: When did my childhood go?’ and Where did my childhood go?”
The first possibility of the time of departure of his childhood relates to the age when he had completed the age of eleven. It was then that he developed a power of understanding. Then he became aware that Hell and Heaven could not be found in Geography. Since they could not be located anywhere in world, he concluded that they did not exist. He thus reached a logical conclusion based on his reasoning power.
The second possibility relates to the time when he realized the hypocrisy of the adults. They were not all that they seemed to be. They talked of love and gave advice of love, but did not act so affectionately.
The third possibility relates to the time when he found that he was the master of his mind. He could use it whichever way he chose. He could now produce his own thoughts and need not repeat those of others. A sense of individuality dawned on him. He wonders whether he lost his childhood on one of these days.
In the final stanza, the poet dwells on the problem where his childhood has disappeared. On the basis of his limited knowledge he thinks that his childhood went to some forgotten place that was hidden in an infant’s face. The poet implies that adolescence follows childhood in the same way as childhood had replaced infancy. It is a stage in the process of growing up.
Childwood Summary In Hindi
कवि बाल्यावस्था (बचपन) की समाप्ति (हानि) के विषय में व्याकुल प्रतीत होता है। यह बड़े होने की प्रक्रिया में सामान्य है। फिर भी कवि अपने दो प्रश्नों के उत्तर ढूँढने का प्रयास करता है। प्रश्न है: ‘मेरा बचपन कब बीत गया?’ तथा ‘मेरा बचपन कहाँ गया?’
उसके बाल्यावस्था (बचपन) के प्रस्थान के समय में पहली सम्भावना उस आयु से सम्बन्धित है जब उसने ग्यारह वर्ष की आयु पूरी की थी। तब उसने अपने समझ सकने की शक्ति विकसित की थी। तब उसे यह ज्ञान हुआ कि नरक तथा स्वर्ग भूगोल में नहीं पाए जा सकते। क्योंकि उन्हें संसार में किसी निश्चित स्थान पर स्थित नहीं किया जा सकता, तो वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि वे विद्यमान ही नहीं थे। इस प्रकार वह अपनी तर्कशक्ति के आधार पर एक तर्क संगत निष्कर्ष तक पहुँचा।
दूसरी सम्भावना उस समय से सम्बन्धित है जब उसने वयस्कों का पाखण्ड (मिथ्या चरित्र) समझ लिया। वे कतई ऐसे नहीं थे जैसे कि वे प्रतीत होते थे। वे प्यार की बातें करते थे तथा प्यार के परामर्श (उपदेश) देते थे किन्तु इतने स्नेह से व्यवहार नहीं करते थे।
तीसरी सम्भावना उस समय से सम्बन्धित है जब उसने यह पाया कि वह अपने मस्तिष्क को स्वामी स्वयं है। वह इसे जैसे चाहे वैसे ही प्रयोग कर सकता था। वह अब अपने विचार उत्पन्न कर सकता था तथा उसे दूसरों के विचार दोहराने की आवश्यकता नहीं थी। उसके ऊपर अपने निजी अस्तित्व की भावना प्रकट हुई। वह आश्चर्य करता है कि क्या उसने अपना बचपन इन दिनों में से किसी दिन गंवा दिया।
अन्तिम छन्द में, कवि इस समस्या पर बातें करता है कि उसकी बाल्यावस्था (बचपन) कहाँ अदृश्य (गायब) हो गई। अपने सीमित ज्ञान के आधार पर वह सोचता है कि उसकी बाल्यावस्था (बचपन) किसी ऐसे भूले-भटके स्थान पर चली गई है जो किसी शिशु के चेहरे में छिपी हुई थी। कवि का निहित (छिपा हुआ) अर्थ यह है कि किशोरावस्था उसी प्रकार बाल्यावस्था (बचपन)के बाद आती है जैसे कि बाल्यावस्था ने शैशव का स्थान लिया है। यह बड़े होने की प्रक्रिया में एक निश्चित अवस्था है।