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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Set 5 with Solutions
समय: 3 घंटे
अधिकतम अंक : 80
सामान्य और आवश्यक निर्देश:
- इस प्रश्न पत्र में दो खंड हैं- खंड ‘अ’ और ‘ब’ कुल प्रश्न 13 हैं।
- ‘खंड ‘अ’ में 45 वस्तुपरक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनमें से केवल 40 प्रश्नों के उत्तर: देते हैं।
- खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, प्रश्नों के उचित आंतरिक विकल्प दिए गए हैं।
- प्रश्नों के उत्तर: दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए दीजिए।
- दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर: देना अनिवार्य है।
- यथासंभव दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर: क्रमशः लिखिए।
खण्ड – ‘अ’
वस्तुपरक प्रश्न (40 अंक)
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए। (1 × 10 = 10)
साहित्य की शाश्वतता का प्रश्न एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या साहित्य शाश्वत होता है? यदि हाँ, तो किस मायने में? क्या कोई साहित्य अपने रचनाकाल के सौ वर्ष बीत जाने पर भी उतना ही प्रासंगिक रहता है, जितना वह अपनी रचना के समय था? अपने समय या युगा निर्माता साहित्यकार क्या सौ वर्ष बाद की परिस्थितियों का भी युग-निर्माता हो सकता है। समय बदलता रहता है, परिस्थितियाँ और भावबोध बदलते हैं, साहित्य बदलता है और इसी के समानांतर पाठक की मानसिकता और अभिरुचि भी बदलती है।
अतः कोई भी कविता अपने सामयिक परिवेश के बदल जाने पर ठीक वही उत्तेजना पैदा नहीं कर सकती, जो उसने अपने रचनाकाल के दौरान की होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि एक विशेष प्रकार के साहित्य के श्रेष्ठ अस्तित्व मात्र से वह साहित्य हर युग के लिए उतना ही विशेष आकर्षण रखे, यह आवश्यक नहीं है। यही कारण है कि वर्तमान युग: में इंगला – पिंगला, सुषुम्ना, अनहद नाद आदि पारिभाषिक शब्दावली मन में विशेष भावोत्तेजन नहीं करती। साहित्य की श्रेष्ठता मात्र ही उसके नित्य आकर्षण का आधार नहीं है। उसकी श्रेष्ठता का युगयुगीन आधार हैं, वे
जीवन-मूल्य तथा उनकी अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्तियाँ जो मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उच्चतर मानव – विकास के लिए पथ-प्रदर्शक का काम करती हैं। पुराने साहित्य का केवल वही श्री-सौंदर्य हमारे लिए ग्राह्य होगा, जो नवीन जीवन-मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे अथवा स्थिति- रक्षा में सहायक हो। कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता को अस्वीकार करते हैं। वे मानते हैं कि साहित्यकार निरपेक्ष होता है और उस पर कोई भी दबाव आरोपित नहीं होना चाहिए। किंतु वे भूल जाते हैं कि साहित्य के निर्माण की मूल प्रेरणा मानव-जीवन में ही विद्यमान रहती है।
जीवन के लिए ही उसकी सृष्टि होती है। तुलसीदास जब स्वांत:सुखाय काव्य-रचना करते हैं, तब अभिप्राय यह नहीं रहता कि मानव-समाज के लिए इस रचना का कोई उपयोग नहीं है, बल्कि उनके अंत:करण में संपूर्ण संसार की सुख – भावना एवं हित-कामना सन्निहित रहती है। जो साहित्यकार अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को व्यापक लोक-जीवन में सन्निविष्ट कर देता है, उसी के हाथों स्थायी एवं प्रेरणाप्रद साहित्य का सृजन हो सकता है।
(क) पुराने साहित्य के प्रति वर्तमान में लोगों की अरुचि क्यों हो गई है?
(i) क्योंकि वर्तमान में पाठक की रूचि बदल गई है।
(ii) क्योंकि वर्तमान में पाठक पढ़ना नहीं चाहते।
(iii) क्योंकि वर्तमान में पाठक कम हो गए हैं।
(iv) क्योंकि वर्तमान में पाठक अरुचिकर होते हैं।
उत्तर:
(i) क्योंकि वर्तमान में पाठक की रूचि बदल गई है।
(ख) साहित्य की प्रासंगिकता किसके अनुसार बदलती रहती है?
(i) देशकाल के अनुसार
(ii) परिस्थिति के अनुसार
(iii) परिस्थिति और देशकाल के अनुसार
(iv) साहित्य के अनुसार
उत्तर:
(iii) परिस्थिति और देशकाल के अनुसार
(ग) जीवन के विकास में साहित्य का कौनसा अंश स्वीकार्य है?
(i) जो अपनी उपयोगिता खो चुका है।
(ii) जो जीवन मूल्यों से असंबद्ध हो चुका है।
(iii) जो नवीन जीवन मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे।
(iv) जो अपनी प्रासंगिकता खो चुका है।
उत्तर:
(iii) जो नवीन जीवन मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे।
(घ) साहित्य को शाश्वत क्यों नहीं कहा जा सकता?
(i) क्योंकि वह समय के साथ अपनी प्रासंगिकता खो बैठता है।
(ii) क्योंकि वह समय के साथ अपनी प्रासंगिकता नहीं खोता
(iii) क्योंकि वह शाश्वत नहीं है।
(iv) क्योंकि वह सनातन है।
उत्तर:
(i) क्योंकि वह समय के साथ अपनी प्रासंगिकता खो बैठता है।
(ङ) सामयिक परिवेश बदलने का कविता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(i) वह रसपूर्ण हो जाती है।
(ii) वह पाठक के मन में उत्तेजना उत्पन्न कर देती है।
(iii) वह पाठक के मन में उत्तेजना उत्पन्न नहीं कर पाती।
(iv) वह पाठक के मन में रस उत्पन्न करने में सक्षम होती है।
उत्तर:
(iii) वह पाठक के मन में उत्तेजना उत्पन्न नहीं कर पाती।
(च) साहित्य की श्रेष्ठता के आधार क्या है?
(i) वे जीवन मूल्य जो मनुष्य के विकास के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करते हैं।
(ii) वे जीवन मूल्य जो मनुष्य के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य नहीं करते हैं।
(iii) मनुष्य की मानवता।
(iv) मनुष्य की विचारशीलता।
उत्तर:
(i) वे जीवन मूल्य जो मनुष्य के विकास के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करते हैं।
(छ) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
(I) मानव समाज के लिए साहित्य की सृष्टि की जाती है।
(II) साहित्य निर्माण की मूल प्रेरणा मानव जीवन में ही विद्यमान रहती है।
(III) साहित्य शाश्वत नहीं होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही हैं?
(i) केवल (I)
(ii) केवल (III)
(iii) (I) और (II)
(iv) (II) और (III)
उत्तर:
(iii) (I) और (II)
(ज) प्रेरणापद साहित्य का सृजन किसके द्वारा संभव है?
(i) जिसके साहित्य में स्वत्व की भावना निहित होती है।
(ii) जिसके साहित्य में लोकहित की भावना निहित होती है।
(iii) जिसके साहित्य में स्वहित की भावना निहित होती है।
(iv) जिसके साहित्य में अपनेपन की भावना निहित होती है।
उत्तर:
(ii) जिसके साहित्य में लोकहित की भावना निहित होती है।
(झ) ‘भावोत्तेजना’ शब्द का संधि विच्छेद होगा-
(i) भावो + उत्तेजना
(ii) भवोत + जन
(iii) भव + उत्तेजना
(iv) भाव + उत्तेजना
उत्तर:
(iv) भाव + उत्तेजना
(ञ) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए उसके बाद दिए गए विकल्पों में से एक सही विकल्प चुनकर लिखिए।
कथन (A) : समय के साथ-साथ साहित्य और पाठक की मानसिकता व अभिरुचि भी बदलती है।
कारण (R) : एक विशेष प्रकार के साहित्य के श्रेष्ठ अस्तित्व मात्र से वह साहित्य हर युग के लिए उतना ही विशेष आकर्षण रहे, ऐसा आवश्यक नहीं है।
(i) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं, तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है।
(ii) कथन (A) गलत है, लेकिन काणण (R) सही है।
(iii) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(iv) कथन (A) सही है, लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्यखख्या करता है।
उत्तर:
(i) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं, तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों में से किसी एक पद्यांश से संबंधित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प द्वारा चयन दीजिए। (1 x 5 = 5)
मेरी भूमि तो हैं पुण्यभूमि वह भारती,
सौ नक्षत्र- लोक करें आके आप आरती।
नित्य नये अंकुर असंख्य वहाँ फूटते,
फूल झड़ते हैं, फल पकते हैं, टूटते।
सुरसरिता ने वहीं पाई हैं सहेलियाँ,
लाखों अठखेलियाँ, करोड़ों रंगरेलियाँ।
नन्दन विलासी सुरवृंद, बहु वेशों में,
करते विहार हैं हिमाचल प्रदेशों में।
सुलभ यहाँ जो स्वाद, उसका महत्व क्या?
दुःख जो न हो तो फिर सुख में है सत्व क्या?
दुर्लभ जो होता है, उसी को हम लेते हैं,
जो भी मूल्य देना पड़ता है, वही देते हैं।
हम परिवर्तनमान नित्य नये हैं तभी,
ऊब ही उठेंगे कभी एक स्थिति में सभी।
रहता प्रपूर्ण हमारा रंगमंच भी,
रुकता नहीं है लोक नाट्य कभी रंच भी।
(क) कवि ने भारत भूमि को पुण्य भूमि क्यों कहा है?
(i) क्योंकि सैकड़ों नक्षत्र लोक इसकी आरती करते हैं।
(ii) क्योंकि यह पुण्यफल देने वाली है।
(iii) क्योंकि यह भारतमाता है।
(iv) क्योंकि यह हमारा देश है।
उत्तर:
(i) क्योंकि सैकड़ों नक्षत्र लोक इसकी आरती करते हैं।
(ख) काव्यांश में हिमाचल प्रदेश की क्या विशेषता बताई गई है?
(i) हिमाचल प्रदेश में हिम है।
(ii) नन्दन वन में बिहार करने वाले देवता अनेक वेशों में आकर इस प्रदेश में विहार करते हैं।
(iii) यहाँ हिमालय पर्वत है।
(iv) यह प्रदेश बर्फ से ढका हुआ है।
उत्तर:
(ii) नन्दन वन में बिहार करने वाले देवता अनेक वेशों में आकर इस प्रदेश में विहार करते हैं।
(ग) यदि जीवन में सुख ही सुख हों और दुःख नहीं, तो सुख का कुछ महत्व नहीं रह जाता’ भाव स्पष्ट करने वाली पंक्ति है-
(i) दुःख जो न हो तो फिर सुख में है सत्व क्या?
(ii) दुर्लभ जो होता है, उसी को हम लेते हैं,
(iii) जो भी मूल्य देना पड़ता है, वही देते हैं।
(iv) हम परिवर्तनमान, नित्य नये हैं तभी,
उत्तर:
(i) दुःख जो न हो तो फिर सुख में है सत्व क्या?
(घ) ‘नित्य नये’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
(i) नित्य नया होता है
(ii) प्रतिपल परिवर्तन होते रहते हैं।
(iii) परिवर्तन होने से पुराने का स्थान नया ले लेता है
(iv) सब नया है
उत्तर:
(ii) प्रतिपल परिवर्तन होते रहते हैं।
(ङ) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
(I) एक ही सी स्थिति में जीते हुए व्यक्ति ऊब जाता है।
(II) परिवर्तन रहने पर व्यक्ति कुछ नया कर सकता है।
(III) धरती पर नया कुछ नहीं होता है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही हैं?
(i) केवल (I)
(ii) केवल (III)
(iii) (I) और (II)
(iv) (II) और (III)
उत्तर:
(iii) (I) और (II)
अथवा
ऋतु वसन्त तुम आओ ना,
वासन्ती रंग बिखराओ ना।
उजड़ रही आमों की बगिया,
बौर नये महकाओ ना।
सूनी वन-उपवन की डालें,
कोयल को बुलवाओ ना।
नूतन गीत सुनाओ ना,
ओ वसन्त तुम आओ ना।
ऊँचे-ऊँचे महलों में,
देखो जाम छलकते हैं…..।
कहीं अँधेरी झोंपड़ियों में,
दुधमुँह रोज बिलखते हैं।
कुटिया के बुझते दीपक को, बनकर तेल जलाओ
ना…
भूखी माँ के आँचल में तुम, दूध की धार बहाओ ना……
प्रिय वसन्त तुम आओ ना…..
कोई धोता जूठे बर्तन,
कोई कूड़ा बीन रहा।
पेट की आग मिटाने को,
रोटी कोई छीन रहा।
काम पे जाते बच्चे के हाथों में किताब धमाओ ना…
घना अँधेरा छाया है, तुम ज्ञान के दीप जलाओ
ना….
ऋतु वसंत तुम आओ ना।
(क) उजड़ रही आमों की बगिया में वसंत को क्या करने के लिए कहा गया है?
(i) गीत गाने के लिए
(ii) नए बौर महकाने और कोयल को बुलवाने के लिए
(iii) देखभाल करने के लिए
(iv) कोयल को गाने के लिए
उत्तर:
(ii) नए बौर महकाने और कोयल को बुलवाने के लिए
(ख) अँधेरी झोंपड़ियों की क्या दशा है?
(i) वहाँ दूधमुंहे बच्चे हँस रहे हैं
(ii) वहाँ उजाला होने वाला है।
(iii) वहाँ दूधमुंहे बच्चे भूख के कारण बिलख रहे हैं
(iv) अँधेरी झोंपड़ियों की स्थिति अच्छी है।
उत्तर:
(iii) वहाँ दूधमुंहे बच्चे भूख के कारण बिलख रहे हैं
(ग) वसंत से कुटिया में क्या करने के लिए कहा गया है?
(i) तेल बनकर बुझते दीपक को जलाने के लिए
(ii) बौर खिलाना
(iii) कोयल को बुलाना
(iv) गीत गाना
उत्तर:
(i) तेल बनकर बुझते दीपक को जलाने के लिए
(घ) छोटे बच्चे मजबूरीवश क्या-क्या कर रहे हैं?
(i) जूठे बर्तन धो रहे हैं
(ii) कूड़ा बीन रहे हैं
(iii) रोटी छीन रहे हैं
(iv) सभी विकल्प सही हैं
उत्तर:
(iv) सभी विकल्प सही हैं
(ङ) काम पर जाने वाले बच्चों के लिए वसंत को किताबें थमाने के लिए क्यों कहा है?
(i) काम दिलाने के लिए
(ii) ज्ञान का प्रकाश पाने के लिए
(iii) खेलने के लिए
(iv) पारिवारिक सहायता के लिए
उत्तर:
(ii) ज्ञान का प्रकाश पाने के लिए
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के लिए उचित विकल्प चुनिए। (1 x 5 = 5)
(क) रंगमंच किस साहित्य विधा में आवश्यक है-
(i) कहानी
(ii) कविता
(iii) नाटक
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(iii) नाटक
(ख) किसी समाचार का घटनास्थल से टेलीविजन पर सीधा प्रसारण कहलाता है-
(i) लाइव
(ii) अलाइव
(iii) बीट रिकॉर्डिंग
(iv) सभी सही हैं।
उत्तर:
(i) लाइव
(ग) ऐसी गद्य विधा जिसमें जीवन के किसी अंक विशेष का मनोरंजक चित्रण किया जाता है, कहलाती है-
(i) कविता
(ii) कहानी
(iii) नाटक
(iv) (i) व (ii) दोनों सही हैं।
उत्तर:
(ii) कहानी
(घ) कॉलम ‘क’ का कॉलम ‘ख’ से उचित मिलान कीजिए।
कॉलम ‘क’ | कोलम ‘ख’ |
(a) अखबार, पुस्तकें | (I) टी.वी. |
(b) इंट्रो | (II) मुद्रिम माध्यम |
(c) दृश्य और शब्द | (III) अंशकालिक पत्रकार |
(d) स्ट्रिंगर | (IV) उल्ट पिरामिड शैली |
(i) – (IV), (b) – (III) (c) – (I), (d)-(II)
(ii) – (II), (b) – (IV), (c) -(I), (d)-(III)
(iii) (a) – (II), (b)-(I), (c)-(IV), (d)-(III)
(iv) (a) – (I), (b) – (II), (c) – (III) (d)-(IV)
उत्तर:
(ii) – (II), (b) – (IV), (c) -(I), (d)-(III)
(ङ) कहानी का केंद्र-बिंदु होता है-
(i) दृश्य
(ii) समय सीमा
(iii) बीट रिकॉर्डिंग
(iv) कथानक
उत्तर:
(iv) कथानक
प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए। (1 x 5 = 5)
आँगन में तुनक रहा है जिंदयाय है
बालक तो हई चाँद में ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
(क) बालक क्या देख रहा है?
(i) चाँद
(ii) आकाश
(iii) तारे
(iv) अपनी माँ
उत्तर:
(i) चाँद
(ख) बच्चे के ठुनकने का कारण है-
(i) भूख लगना
(ii) प्यास लगना
(iii) चाँद को पाना
(iv) माँ की गोद में रहना
उत्तर:
(iii) चाँद को पाना
(ग) माँ बालक को क्या दिखाकर समझाती हैं?
(i) दर्पण
(ii) आईना
(iii) आकाश
(iv) दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब
उत्तर:
(iv) दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब
(घ) ‘देख आईने में चाँद उतर आया है’ कथन से माँ की कौनसी विशेषता उजागर होती है?
(i) माँ की सूझ-बूझ
(ii) माँ का चरित्र
(iii) माँ का गुस्सा
(iv) माँ का क्रोध
उत्तर:
(i) माँ की सूझ-बूझ
(ङ) काव्यांश में प्रयुक्त रस है-
(i) श्रृंगार रस
(ii) करुण रस
(iv) वीर रस
(iii) वात्सल्य रस
उत्तर:
(iii) वात्सल्य रस
प्रश्न 5.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए। (1 × 5 = 5)
बाजार में एक जादू है। वह जादू आँख की यह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा।
कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है! मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान जरुरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फँसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है।
(क) बाजार के जादू को रूप का जादू क्यों कहा गया है?
(i) क्योंकि उसे देखकर मनुष्य बिना मतलब ही उगा रह जाता है।
(ii) क्योंकि उसमें जादू होता है।
(iii) क्योंकि उसमें सौन्दर्य होता है।
(iv) क्योंकि उसमें ऐश्वर्य होता है।
उत्तर:
(i) क्योंकि उसे देखकर मनुष्य बिना मतलब ही उगा रह जाता है।
(ख) बाजार के जादू का असर मनुष्य पर कब दिखने लगता है?
(i) जब उसकी जेब भरी हुई हो
(ii) जब उसका मन भरा हुआ हो
(iii) जब दोनों ही भरे हुए हों
(iv) जब दोनों भरे हुए हों या दोनों में से एक भरा हुआ हो
उत्तर:
(iv) जब दोनों भरे हुए हों या दोनों में से एक भरा हुआ हो
(ग) बाजार के जादू के समाप्त होने पर ग्राहक की क्या दशा होती है?
(i) वह अपने वास्तविक रूप में आ जाता है।
(ii) वह जान लेता है कि वह ठगा गया है।
(iii) उसे अपने ग्राहक होने पर अभिमान होने लगता है।
(iv) उसका ग्राहक होने का अभिमान समाप्त हो जाता है।
उत्तर:
(ii) वह जान लेता है कि वह ठगा गया है।
(घ) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए उसके बाद दिए गए विकल्पों में से एक सही विकल्प चुनकर लिखिए।
कथन (A) : अनावश्यक रूप से बाजार न जाने पर बाजार के जादू से बचा जा सकता है।
कारण (R) : जब जेब खाली हो और मन भरा हुआ हो तो बाजार न जाने पर भी बाजार के जादू से बचा जा है।
(i) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं, तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है।
(ii) कथन (A) गलत है, लेकिन कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(iv) कथन (A) सही है, लेकिन कारण (R) उसी गलत व्याख्या करता है।
उत्तर:
(i) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं, तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है।
(ङ) गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
(I) मन खाली होने पर बाजार की अनेक भौतिक वस्तुओं के प्रति मन जागरूक होता है।
(II) जेब भरी होने पर मन किसी की नहीं मानता।
(III) फँसी चीजें मन को प्रफुल्लित कर देती हैं। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही हैं?
(i) केवल (I)
(ii) केवल (III)
(iii) (I) और (II)
(iv) (II) और (III)
उत्तर:
(iii) (I) और (II)
प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर हेतु निर्देशानुसार सही विकल्प का चयन कीजिए। (1 × 10 = 10)
(क) ‘जूझ’ कहानी के लेखक आनंद यादव किस भाषा के कथाकार हैं?
(i) मराठी
(ii) हिंदी
(iii) पंजाबी
(iv) गुजराती
उत्तर:
(i) मराठी
(ख) ‘जूझ’ उपन्यास किस पुरस्कार से सम्मानित है?
(i) साहित्य अकादमी
(ii) भारतीय ज्ञानपीठ
(iii) नोबेल पुरस्कार
(iv) व्यास सम्मान
उत्तर:
(i) साहित्य अकादमी
(ग) लेखक के पिता के व्यवहार से आप को उनके चरित्र की कौन-सी विशेषता का पता चलता है?
(i) दयालु एवं व्यावहारिक
(ii) कठोर एवं अव्यावहारिक
(iii) स्वार्थी
(iv) अहंकारी
उत्तर:
(ii) कठोर एवं अव्यावहारिक
(घ) यशोधर पंत क्या काम करते हैं?
(i) गोल मार्किट में दुकान चलाते हैं
(ii) पहाड़ पर काम करते हैं
(iii) होम मिनिस्ट्री में सेक्शन ऑफिसर हैं
(iv) मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते हैं
उत्तर:
(iii) होम मिनिस्ट्री में सेक्शन ऑफिसर हैं
(ङ) ऑफिस में यशोधर बाबू की शादी की बात कैसे हुई?
(i) ऑफिस से जल्दी जाने पर
(ii) ऑफिस में लेट आने पर
(iii) घड़ी के बारे में चर्चा करने पर
(iv) समय पर काम खत्म करने पर
उत्तर:
(iii) घड़ी के बारे में चर्चा करने पर
(च) अपने बच्चों की तरक्की से खुश होने के बाद भी यशोधर बाबू को कौन-सी बात खटकती है?
(i) अच्छा खाना खाना
(ii) पैदल दफ्तर जाना
(iii) गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा
(iv) बिरला मंदिर जाना
उत्तर:
(i) अच्छा खाना खाना
(छ) ऐन फ्रैंक द्वारा लिखित डायरी की मूल भाषा है?
(i) अंग्रेजी
(ii) पुर्तगाली
(iii) डच
(iv) जर्मन
उत्तर:
(iii) डच
(ज) ‘जूझ’ कहानी के नायक के पिता उसे पढ़ाने की बजाय क्या करवाना चाहते थे?
(i) खेत के काम
(ii) शहन में नौकरी
(iii) कॉलेज में पढ़ाई
(iv) गाँव में पढ़ाई
उत्तर:
(i) खेत के काम
(झ) दत्ता जी राव कौन थे?
(i) गाँव के जर्मींदार
(ii) लेखक के पिता
(iii) पाठशाला के अध्यापक
(iv) लेखक के मित्र
उत्तर:
(i) गाँव के जर्मींदार
(ञ) मोहनजोदड़ो टीलों पर क्यों बसा था?
(i) शत्रुओं से रक्षा के लिए
(ii) सिन्धु नदी के पानी से रक्षा के लिए
(iii) अपनों को दूसरों से ऊँचा दिखाने के लिए
(iv) स्वयं का महत्व रखने के लिए
उत्तर:
(ii) सिन्धु नदी के पानी से रक्षा के लिए
संड ‘ब’
वर्णनात्मक प्रश्न (40 अंक)
प्रश्न 7.
दिए गए चार अप्रत्याशित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 120 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए। (6)
(क) नैतिकता का पतन : मानवता का पतन
(ख) बुजुर्गों की समस्या
(ग) पुस्तकें पढ़ने की आदत
(घ) पुस्तकालय की उपयोगिता
उत्तर:
(क) नैतिकता का पतन : मानवता का पतन:
नैतिकता और मानवता का अटूट संबंध है। मानवता को बनाने के लिए जो नीतियाँ होती हैं वही नैतिकता कहलाती है। अतः जो कार्य मानवता के विरुद्ध होगा वह कभी भी नैतिक नहीं हो सकता। अतः नैतिकता को ही मानवता की उपज कहा जा सकता है। आज धीरे-धीरे मानवता संकुचित होती जा रही है। वर्तमान में लोग स्वार्थी होते जा रहे हैं। उनका स्वार्थ इतना अधिक बढ़ता जा रहा है कि उसे सिद्ध करने के लिए वह अपने पारिवारिक और सामाजिक संबंधों से दूर होते जा रहे हैं।
फलस्वरूप वे अकेले होते जा रहे हैं। आजकल लोग अपने काम से काम रखते हैं, भावुकता के स्थान पर वे सिद्धांतवादी होते जा रहे हैं। आज ‘हम’ का स्थान ‘मैं’ ने ले लिया है। लोगों पर यह सोच हावी होती जा रही है कि देश का चाहे कुछ हो, पर मेरा भला होना चाहिए। माता-पिता का भी आज यही एकमात्र उद्देश्य है कि उनका बच्चा धन-संपत्ति कमाकर धनवान हो जाए भले ही उसमें संस्कार नाममात्र के लिए भी न हों। शिक्षा व्यवस्था इस प्रकार की है जो बच्चे को रोजगार तो दिलाती है पर उसे चरित्रवान नहीं बनाती। वास्तव में आज चारों ओर अंधकार-सा छा गया है। आज जरूरत है इस अन्धकार से बाहर आकर प्रकाश की ओर जाने की। मानवतावादी दृष्टिकोण को अपना कर हम अपनी नैतिकता को बचा सकते हैं और एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।
(ख) बुजुर्गों की समस्या
भारतीय संस्कृति में बुजुर्गो को पूजनीय और सम्मानीय स्थान प्राप्त है। आज आधुनिकता की अंधी दौड़ में उनका वह स्थान उनसे दूर होता जा रहा है। आज उन्हें घर में कोई भी नहीं पूछता। आज तो स्थिति यह हो गई है कि जब तक वे पैसा कमाते हैं, तब तक तो उनकी बड़ी पूछ होती है और सेवानिवृत्ति के बाद उनसे बात तक भी नहीं की जाती। अब घर में उनका स्थान फालतू सामान के समान हो जाता है। उनके हर काम में मीनमेख निकालना, उनसे घर के फालतू काम करवाना, बस यही उनकी नियति बन जाता है।
कुछ लोग तो इतने गिर जाते हैं कि बुजुर्गो को खाना खिलाना भी उन्हें भार लगने लगता है। वे उनसे आदरपूर्वक बात करना, उन्हें अपने मित्रों से मिलाना भी अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। वे ये भूल जाते हैं कि अपनी इन्हीं संतानों का परिचय अपने मित्रों से करवाते समय इन्हीं बुजुर्गो का सीना शान से चौड़ा हो जाता था। बुजुर्ग घर के मुखिया होते हैं। वास्तव में बुजुर्ग हमारे मार्गदर्शक होते हैं क्योंकि उन्हें जीवन जीने का अनुभव हमसे अधिक होता है। वे अपने बच्चों को उंगली पकड़कर चलना सिखाते हैं और बड़े होने पर उनके पथप्रदर्शक हो जाते हैं। अतः हमें उनका मान-सम्मान करना चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए।
(ग) पुस्तकें पढ़ने की आदत:
किसी ने सच ही कहा है कि पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र होती हैं। मित्र भले ही हमारा साथ छ्ड़ड दे पर पुस्तकें आजीवन ही हमारा साथ निभाती है। पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान मनुष्य को एक नई दिशा की ओर ले जाता है जहाँ केवल ज्ञान का प्रकाश होता है। उसका यही ज्ञान का आयाम उसके चरित्र निर्माण में सहायक होता है। सही मायने में पुस्तर्के ही हमारी सच्ची पथ-प्रदर्शक होती हैं और ज्ञानवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। वास्तव में मानव मस्तिष्क एक सूखे कुएँ के समान होता है जिसे भरने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है और यह ज्ञान पुस्तकों से प्राप्त होता है। मनुष्य जितना पुस्तकें पढ़्ता है उतनी ही उसकी ज्ञान-पिपासा बड़ती जाती है।
आजकल पदने की यही प्रवृत्ति घटती जा रही है क्योंकि कम परिभ्रम में ही उसे सब कुछ इन्टरनेट पर मिल जाता है। अनेक बार इन्टरनेट पर बहुत कुछ ऐसा भी सामने आ जाता है जो हमारे हित के लिए नहीं है। बच्चे इससे अधिक प्रभाषित हैं और उन्हे इसके लिए प्रेरित भी हमारे द्वारा ही किया जाता है। आजकल तो विद्यालयों में भी यही कह दिया जाता है कि इन्टरनेट पर खोज लेना। आज लोग यह भूल गए हैं कि पढ़ने की आद्त को अपना कर ही हम अज्ञानता के अंधकार को दूर हटाकर ज्ञान के प्रकाशा की ओर बढ़ सकते है। अतः इन्हें अपना कर हम अपने ज्ञान में बृद्धि कर उन्नति के मार्ग तक पहुँच सकते है।
(घ) ‘पुस्तकालय की उपयोगिता’:
पुस्तकालय शब्द दो शब्दों के मेल से बना है-‘पुस्तक’ और “आलय’। इसका अर्थ है ‘पुस्तकों का घर’, अर्थांच वह स्थान जहाँ पर विभिन्न विषयों की जानकारी देने हेतु पुस्तकें रखी जाती हैं। अतः इस स्थान को ज्ञान का धंडार भी कहा जा सकता है। एक विद्यार्थी के लिए तो पुस्तकलय बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां पर हर विषय की पुस्तके उपलख्य होती हैं जो उसके ज्ञानार्जन में सहायक है। उच्च कक्षाओं के विद्यार्थी के लिए तो यह बहुत ही उपयोगी है क्योंक चिकित्सा, इंजीनियरिंग आदि की पुस्तर्क एक अकेला विद्यार्थी खरीदने में सक्षम नहीं हो पाता।
पुस्तकालय उनकी बहुत मदद करते है। पुस्तकालय में केवल पुस्तके ही उपलख्य नहीं होरीती अपितु अध्ययन के लिए उपयुक्त शांत वातावरण उपलब्ध होता है। जो पुस्तकें घर के लिए नहीं मिलर्ती उन्हें वहीं रीडिंग रूम में पढ़ने की सुविधा उपलब्य रहती है। पुस्तकालय को तीन वर्गो में बांटा गया है-पहले वर्ग में निजी पुस्तकालय आता है जिसे व्यक्ति अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए बनाता है।
दूसरे वग्ग में सार्वंजानिक पुस्तकालय आता है, जो सरकार द्वारा सबके उपयोग के लिए होता है। तीसरे वर्ग में शिक्षा संस्थानों का पुस्तकालय आता है जिनका उपयोग उन विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थीगण करते हैं। पुस्तकालय सभी वर्गों के लिए उपयोगी होते हैं। इनके अतिरिक यह्ताँ पुरानी और दुर्लभ पुस्तके भी उपलक्ं होती है। अतः ज्ञानार्जन ह्रेतु पुस्तकालय अत्यंत उपयोगी है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीजिए। (3 x 2 = 6)
(क) अप्रत्याशित विषयों पर लेखन लिखते समय ध्यान देने योग्य बिंदुओं का उल्लेख कीजिए।
(ख) नाट्य रूपांतरण में आने वाली समस्याओं को लिखिए।
(ग) रेडियो नाटक की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(क) अप्रत्याशित विषयों पर लेखन करते समय निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए-
- दिए गए विषय की लेखक को संपूर्ण जानकारी होना आवशयक है।
- अपने घस्तिष्क में एक रूपरेख्रा बनाते हुए ही लेखक को अपना लेख्र आरम्भ करना चाहिए।
- उसके द्वारा दिए गए तथ्य चिष्य से उचित तालमेल रखते हों अन्यथा लेखन का कोई महृत्व नहीं रह जाता।
- लेखक के विचार विषय से संबंधित और तर्कसंगत होने चाहिए।
- इस प्रकार के लेखन की शैली में ‘में’ का प्रयोग अवश्य करनो चाहिए।
- लेखक को लेख लिखते समय अपनी बिद्धता का प्रदर्शान इस प्रकार नहीं करना चाहिए कि वह विषय से हट जाए।
- उचित कथन या सोकोक्षि, मुहावरों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सकता है।
- लेखन को रचचिकर बनाने के लिए विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग किया जा सकता है।
(ख) नाटथ रूपांतरण करते समय अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से कुछ प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
- जिस समस्या का प्रमुखता से सामना करना पड्ता है, वह है कहानी के पात्रों के मनोभावों को कहानीकार द्वारा प्रस्तुत मानसिक द्वंद्व के नाटकीय रूप को प्रस्तुत करना।
- पात्रों के बंधुओं को अभिनय के अनुरूप ढालने में भी बड़ी समस्या आती है क्योंकि लिखने और प्रदर्शन करने में भी अंतर आ ज्ञाता है।
- निर्जीव वस्तुओं को नोटकीय रूप प्रदान करना नाटककार के लिए किसी बड़ी समस्या से कम नहीं होता।
- कहानी के दृश्यों के अनुसार प्रकाश और ध्यनि की व्यवस्था करना भी समस्याप्रद होता है।
- मुख्य समस्या होती है कथानक को अभिनय के अनुरुप छालना और सभी पात्रों के लिए संबाद तैयार करना।
(ग) रेडियो नाटक की विशेषताएँ निम्नलिखित है-
- रेडियो नाटक में पात्रों से संबंधित सभी जानकारियाँ संवाद के माध्यम से ही प्राप्त होती है।
- नाटक का संपूर्ण कथानक संबादों पर निर्धर होता है।
- कथा को श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए धर्वनि और संवाद का विशेष योगदान होत्ता है।
- रेडियो नाटक का उद्देशय भी संवादों के माध्यम से ही स्पष्ट होता हैं।
- श्रोताओं को संदेश भी संवादों द्वारा ही दिया जाता है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 80 शब्दों में दीजिए। (4 x 2 = 8)
(क) छह ककारों को स्पष्ट कीजिए।
(ख) विशेष लेखन को परिभाषित करते हुए समाचार-पत्रों में विशेष लेखन की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
(ग) उल्टा पिरामिड शैली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) ‘समाचार लेखन में छह ककारों का बहुत महत्वपूठ स्थान है। ये निम्नलिखित हैं-
- कब-इसे समाचार लेखन का आधार कहा जाता है। इससे घटना के समय का बोध होता है।
- कहाँ-इसके माध्यम से घटना के घटित होने के स्थान का चित्रण किया जाता है।
- कैसे-इसमें समाचार का विश्लेषण, वितरण और व्याख्या होती है।
- क्या-इसके द्वारा समाचार की रूपरेखा तैयार की जाती है।
- क्यों-इस ककार के द्वारा समाचार के विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेपणत्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है।
- कौन-इसे आधार बनाकर समाचार लिखा जाता है।
(ख) किसी सामान्य विषय से हृटकर विशेष विषय पर लेख लिखना ही विशेष लेखन कहलाता है। जैसे-कृषि, ब्यापार, शिक्षा, खेल, मनोरंजन आदि पर लेखन विशेष लेखन के अंतर्गत आता है। समाचार पत्र और पत्र-पत्रिकाओं में इस प्रकार के लेख लिखे जाते हैं अतः उनमें इनका विशेष योगदान होता है। समाचार पत्र में इनके लिए विशेष स्थान या बॉक्स निश्चित होता है। ये उसी के अंदर लिखे जाते है। इस प्रकार के लेख संबंधित विशेषज्जों के द्वारा ही लिखे जाते है। इससे समाच्चर पत्र को विशेष प्रशंसा मिलती है।
(ग) उल्या पिरामिड्ड शैली वर्तमान में अधिक प्रचलित शैली है। इसके अंतर्गत समाचार लिखते समय सबसे पहले विषय से संबंधित महरवपूर्ण तथ्य और जानकारियाँ दी जाती हैं और उसके पश्चात कम महत्वपूर्ण तथ्यों को देकर बात को समाप्त कर दिया जाता है। उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है। शीर्षक-इंट्रो (मुखड्षा)-बॉडी-समापन
प्रश्न 10.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में लिखिए। (3 x 2 = 6)
(क) “धूत कहौ, अवधूत कहौ ……सवैये में व्यक्त तुलसीदास जी के स्वाभिमान को व्यक्त कीजिए।
(ख) रस का अक्षय पात्र से कवि ने रचना कर्म की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है? ‘छोटा मेरा खेत’ के आधार पर उत्तर दीजिए।
(ग) उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि फिराक की रुबाइयों में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखता है?
उत्तर:
(क) तुलसीदासजी स्वाभिमानी व्यक्त थे। जातिसंप्रदाय और वर्ग-भेद से कहीं कपर इठे हुए वे प्रभावशाली लोगों को भी छरी-छोटी सुनाने से कभी पीछे नहीं हटते थे। उन्होने हिन्दू धर्म के मनमाने आदेशों की न तो कभी स्वयं ही पालना की और न ही कभी किसी को पालना करने के लिए मजबूर किया। धर्म के कधित ठेकेदारों ने उन्हैं धूर्त, जुलाहा आदि न आने क्या-क्या कहकर उनका अपमान किया पर वे कभी न तो किसी के आगे इकु और न ही उन्होंने कभी किसी को अपना अनुचित लाभ उठाने दिया।
वह संस्यार के लोगों से कहते है कि-मुहो चाहे जो भी कहो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। मुहे दुनिया से कोई लेना-देना नही क्योंकि मैं तो राम का दास हैं। मैं मस्जिद में रात विता सकता है, निशिचन्त होकर रामकधा सुनाते थे और फक्कड्ड बाबा के समान अपना जीवन बिताते थे।
(ख) यहाँ अक्षय पात्र से तात्पर्य उस पात्र से है, जो कभी भी खाली नही हो सकठा है। ठीक उसी प्रकार कविता का बीज अगर एक बार रोपित कर दिया जाता है, और अगर एक बार वह बीज फसल बनकर कविता का रूप धारण कर लेता है, तो उस कविता और आक्षय पात्र में कोई अंतर नहीं रहता है।
युगों-युगों तक कवि की कविता को पढ़ा जाता है, समझा जाता है, एवं वह कविता लोगों के बीच हमेशा बहुचर्चित बन कर रह जाती है। यानी की कविता का रस उस आमृत अभ्षय पात्र के समान है, जो कभी-भी कमता नहीं है, बक्रता चला जाता है, क्योंक यह साहित्य का रस है।
(ग) फिराक गोरस्बपुरी उदूू के शायर हैं। उनकी रुबाइयों को पढ़कर लगता है कि उन्होंने हिंदी भाषा के लोक-प्रचलित रूप का स्वाभाविक प्रयोग किया है। ‘चाँद का टुकड़ा ‘, ‘लोका देना’ आदि घरेलू हिंदी के उदाहरण है कोई भी अनपढ़ व्यक्ति इनकी रुबाइयों को सुनकर इनका पूर्ण आनंद ले सकता है। कुछ उच्चारण तो बहुत ही सुंदर हैं, जैसे-‘बालक तो हई चाँद पे ललचाया है’। इस पंकि में ‘हईं का उच्चारण अत्यंत ही सुंदर और स्वाभाचिक है।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित ती प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में लिखिए। (2 x 2 = 4)
(क) कार्यक्रम संचालक किस बात में असफल रह गया ? ‘कैमरे में बंद् अपाहिज’ के आधार पर लिखिए।
(ख) बच्चन के संकलित गीत में दिन ढलते समय पथिकों और पक्षियों की गति में तीव्रता और कवि की गति में शिधिलता के कारण लिखिए।
(ग) कवि ने कैसे समझाया है कि कविता के प्रभाव की कोई सीमा नहीं होती ?
उत्तर:
(क) कार्यक्रम संचालक को ऐसा लगा कि उसकी बहुत कोशिशों के बावजूद अपाहिज अपने दुःख-दर्द को पूरी तरह रोकर नहीं दिखा सका। बह उसकी औखों में से आस्, निकालने में सफल नहीं हो सका। वह ओर-जोर से रोया नहीं। उसने करुणा का सागर नहीं बहाया। अतः वह मनबांहित प्रभाव उत्पन्न करने में सफल नही हो सका।
(ख) संकलित गीत में दिन छलते समय पथिकों और पक्षियों की गति में तीव्रता इसलिए है कि उनके बंधु गण उनकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। अपने इसी प्रेम की अधीरता के कारण वे तीव्र गति से अपने घर जा रहे है और जल्दी-से-जल्दी वहाँ पहुँचना चाहते है। कवि की गति में शिथिलता आने का यह कारण है कि उसके घर में कोई थी उसकी प्रतीक्षा करने वाला नहीं है। वह अकेला है इसलिए उसे घर जाने की भी जल्दी नहीं है।
(ग) कवि ने कविता की समानता उन खिलाड़ी बच्चों से की है, जो खेलते हुए अपने-पराए का भेद नहीं करते उन्हे सभी घर अपने प्रतीत होते है। इसी प्रकार कविता रचते समय कवि को यह सारा संसार अपना तथा अनंत प्रतीत होता है।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में लिखिए। (3 x 2 = 6)
(क) ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ लोककलाओं के संरक्षण का संदेश देती है-कथन की पुष्टि पाठ के आधार पर कीजिए।
(ख) पुत्र की चाह परिवार के लोगों को कन्या को जन्म देने वाली माँ का शत्रु बना देती है-‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(ग) जाति और श्रम विभाजन में क्या बुनियादी अंतर है ? ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर:
(क) यह पाठ लोककलाओं के संरक्षण का संदेश देता है। वास्तव में लोककलाएँ अपने बल पर नह्ही जीती। उनके विकास के लिए समाज के सहयोग की आवश्यकता होती है। समाज के साथ-साथ सरकार के प्रयास भी इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते है। यदि लोक कलाओं के कलाकार पहलवान, स्विलाड़ी, नर्तक, गायक आदि अपनी कला के विकास के बजाय अपनी जीविकोपार्जन के साधन जुटाने में लगो रहैंगे तो उनकी कला आगे नहीं बहु पाएगी। लोगों को यह कलाएं आनंद तो प्रदान करती हैं, पर वे उसका उचित मूल्य नहीं चुकाते हैं इसलिए धीरे-धीरे समय के साथ-साथ ये लुप्तप्राय हो रही हैं। लोककलाओं को अर्थिक संरक्षण देने की आवश्यकता है जिससे वे और अधिक निखरे हुए रूप में हमारे सामने आ सकें।
(ख) हमारे देश में पुत्र की चाह इतनी अधिक है कि कन्या को जन्म देने वाली माँ का तिरस्कार होता है 1 पुत्र को जन्म देने वाली माँ का सम्मान किया जाता है, उसके जन्य की खुशी में थाली बजाई जाती है और पुत्री के जन्म का गम मनाया जाता है। परिवारजन ही पुत्री की मीं के दुश्मन बन जाते हैं। भक्तिन का जीवन इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। भक्तिन की सास के तीन पुत्र थे इसलिए बे गौरवशाली सास बनकर अपनी बहुओं पर शासन करती रही। उसकी जेट्रनियों ने कुरूप पुत्रों को जन्म दिया पर फिर थी उन्हें खूब मान-सम्मान मिला और उनके बेटों को दूध-मलाई खाने को मिलती। दूसरी और तीन पुत्रियों को जन्म देने वाली भक्तिन से खूय काम कराया जाता और बात-बात पर उसका अपमान किया जाता। उसकी बेटियों को भी रखख-सूखा खाना दिया जाता।
(ग) लेखक जाचि-प्रथा और श्रम-विभाजन को अलग-अलग मानते है। उनके अनुसार जाति-प्रथा में मनुष्य की क्षमता की उपेक्षा होती है। अत्तः इन दोनों में निम्नलिखित बुनियादी अंतर है-
- जाति विभाजन, श्रम विभाजन का तो विभाजन करती ही है, उसके साच-साथ ये श्रमिकों का धी विभाजन करती है।
- सभ्य समाज में तो श्रम विभाजन आवश्यक हो सकता है परंतु श्रमिक वर्ग में यह आवश्यक नहीं है।
- जाति विभाजन के श्रम विभाजन या पेशा चुनने की छूट नहीं होती उरकि श्रम विभाजन में ऐसी छूट हो सकती है।
- बिपरीत परिस्थितियों में जाति-प्रथा रोजगार परिवर्तन का कोई अवसर नहीं देती जबकि अ विभाजन में व्यक्ति रोजगार परिवर्तित कर सकता है।
- जाति प्रथा व्यक्षि की रूचि पर आधारित नहीं होती जबकि श्रम विभाजन में ऐसा होता है।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में लिखिए। (2 x 2 = 4)
(क) ‘बाजार दर्शन’ पाठ के आधार पर पैसे की व्यंग्य शक्ति को समझाइए।
(ख) ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर त्याग और दान की महिमा को स्पष्ट कीजिए।
(ग) लुट्टन के राज पहलवान लुट्टन सिंह बन जाने पर उसकी दिनचर्या कैसी हो गई?
उत्तर:
(क) पैसे की व्यांय शक्ति का तात्पर्य है-पैसे के आधार पर र्वयं को हीन या श्रेष्ठ समझना। पैसा ही हीनता या क्रेष्ठता का अहसास कराता है। यही पैसे की व्यंग्य शक्ति है। अपनी क्रय-शक्ति को दिखाकर खरीददार का स्वयं को ऊँचा सिद्ध करना ही इसका उदाहरण है। अपने को ऊँचा सिद्ध करने के लिए वह बाजार से बिना जरूरत के ढेर सारा सामान खरीद लेता है।
(ख) इस पाठ में त्याग और दान की महिमा को बताया गया है। लेखक का कहना है कि मनुष्य को वही दान करना चाहिए जिसमें त्याग की भावना निहित हो। मनुष्य के पास जिस चीज की कमी हो, उसी का त्याग महत्वपूर्ण है। करोड़ों रुपयों में से दो-चार रुपये दान करना दान नहीं होता। स्वयं को कष्ट में डालकर किया गया त्याग ही सच्चा त्याग है।
(ग) लुट्टन के राज पहलवान बन जाने पर उसकी दिनचर्या नियमित हो गई। वह रोज सवेरे उठकर दंगल पहुँचता था। वहाँ ढोल बजा-बजाकर अपने दोनों बेटों से कसरत करवाता था। दोपहर के समय लेटे-लेटे अपने बेटो को सांसारिक और व्यावहारिक ज्ञान देता था। वह बाजारों और मेलों में बेफिक्र और मस्ती से घूमा करता था।