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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Set 3 with Solutions
समय: 3 घंटे
अधिकतम अंक : 80
सामान्य और आवश्यक निर्देश:
- इस प्रश्न पत्र में दो खंड हैं- खंड ‘अ’ और ‘ब’ कुल प्रश्न 13 हैं।
- ‘खंड ‘अ’ में 45 वस्तुपरक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनमें से केवल 40 प्रश्नों के उत्तर: देते हैं।
- खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, प्रश्नों के उचित आंतरिक विकल्प दिए गए हैं।
- प्रश्नों के उत्तर: दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए दीजिए।
- दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर: देना अनिवार्य है।
- यथासंभव दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर: क्रमशः लिखिए।
खण्ड – ‘अ’
वस्तुपरक प्रश्न (40 अंक)
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए- (1 × 10 = 10)
पर जैसा जानकारों ने बताया, कभी वह पेड़ हरा था, उसकी जड़े धरती की नरम-नरम मिट्टी से दबी थीं और उसकी छतनार डालें आकाश में ऐसी फैली हुई थी जैसे विशाल पक्षी के डैने और उन डालियों के कोटरों में अनगिनत घोंसले थे। पनाह के नीड़, बसेरे दूर बियाबाँ से लौटकर पक्षी उनमें बसेरा करते, रात की भीगी गहराई में खोकर सुबह दिशाओं की आरे उड़ जाते और मैं जो उस पेड़ के लुंठपन पर कुछ दुखी हो चुप हो जाता तो वह जानकर कहता, उसने वह कथा कितनी ही बार कही, आँखों देखी बात है, इस पेड़ की सघन छाया में कितने बटोहियों ने नए प्राण पाए है, कितने ही सूखें हरे हुए हैं।
सुनों उसकी कथा, सारी बताता हूँ और उसने बताया, जलती दुपहरी में मरीचिका की नाचती आग के बीच यह पेड़ हरा-भरा झूमता पत्तों के विस्तृत ताज को सिर से उठाए। आंधी और तूफान में उसकी डालें एक-दूसरे से टकराती, टहनियाँ एक-दूसरे में गुँथ जाती और जब तपी धरती बादलों की झरती झींसी रोम-रोम से पीती और रोम-रोम सजीव कर उनमें से लता प्रतानों के अंकुर फोड़ देती तब पेड़ जैसे मुस्कुराता और बढ़ती लताओं की डाली रूपी भुजाओं को जैसे उठाकर भेंट लेता।
उस विशाल तरू में तब बड़ा रस था। उसकी टहनी टहनी, डाली डाली, पोर पोर में रस था और छलका छलका वह लता वाल्लरियों को निहाल कर देता। अनंत लताएँ, अनंत वल्लरियाँ पावस में उसके अंग-अंग से, उसकी फूटती संधियों से लिपटी रहती और देखने वाले बस उसके सुख को देखते रह जाते।
और मेरा वह जानकार बुजुर्ग एक लंबी साँस लेकर थका-सा कह चलता कि तुम क्या जानों, जिसने केवल पावस पीले झड़ते पत्ते न देखें? फिर एक दिन, एक साल कुछ ऐसा हुआ कि जैसे सब कुछ बदल गया। जहाँ वसंत के आते ही पत्तों के से कोमल पत्ते उस वृक्ष की टहनियों से हवा में डोलने लगते थे, वहाँ उस साल फिर वे पत्ते न डोले, वे टहनियाँ सूख चली। दूर दिशाओं से आकर दस पेड़ की नीड़ों में विश्राम करने वाले पक्षी उसकी छतनार डालों से उड़ गए। जहाँ अनंत अनंत कोयलें कूका करती थी।
बौराई फुगनियों पर भौंरो की काली पंक्तियाँ मंडराया करती थीं, सहसा उस पेड़ का रस सूख चला। और जैसे उसे बसेरा लेने वाले पक्षी छोड़ चले, जैसे कूकती कोयले, टेरते पपीहें मंडराते भरि उसके अनजाने हो जाए। वैसे ही लता वल्लरियाँ उसके स्कंध देश से, उसी फैली मजबूत डालियों से, उसकी मदमाती झूमती टहनियों से धीरे- धीरे उतर गई, कुछ सूख गई मर गई।
उस लता-संपदा के बीच फिर भी एक मधुर पुष्पवती पराग भरी वल्लरी उससे लिपटी रही और ऐसा कि लगता कि प्रकृति के परिवर्तन उस पर असर नहीं करते। वांसती जैसे सारी ऋटियों में रसभरी वांसती बनी रहती सहकार वृक्ष से लिपटी वल्लरियों की उपमा कवियों ने अनोकनेक दी हैं। पर वह तो साहित्य और कल्पना की बात थी, उसे कभी चेता ना था, पर चेता मैंने उसे अब, जब उस एंकात वल्लरी को उस प्रकांड तरू से लिपटे पाया।
(क) हरे पेड़ की डालें कैसी दिखती थीं?
(i) खुले विशाल पंखों जैसी
(ii) हरी-भरी
(iii) सघन
(iv) मजबूत
उत्तर:
(i) खुले विशाल पंखों जैसी
(ख) वृक्ष की लता वल्लरियाँ किसे देखकर पुलकित हो उठतीं थीं?
(i) ग्रीष्म ऋतु को
(ii) शीत ऋतु को
(iii) वर्षा ऋतु को
(iv) पक्षियों को
उत्तर:
(iii) वर्षा ऋतु को
(ग) ‘जैसे सब कुछ बदल गया’ यहाँ किसका सब कुछ बदल गया था?
(i) हरे-भरे आम के वृक्ष का
(ii) पक्षियों का
(iii) भौरों का
(iv) लता वल्लरियों का
उत्तर:
(i) हरे-भरे आम के वृक्ष का
(घ) बादलों की फुहारों का लता प्रतानों पर क्या परिणाम होता?
(i) वह पेड़ से लिपट जाती।
(ii) उसमें अंकुर फूट पड़ते।
(iii) वह भर जाती।
(iv) वह सूख जाती।
उत्तर:
(ii) उसमें अंकुर फूट पड़ते।
(ङ) वसंत ऋतु का पेड़ की टहनियों पर क्या प्रभाव पड़ता?
(i) वे टूट कर गिर जातीं।
(ii) वे हिलने लगतीं।
(iii) वे सूख जात
(iv) वे हवा में लहराने लगतीं।
उत्तर:
(iv) वे हवा में लहराने लगतीं।
(च) कवियों ने कौनसे वृक्ष से लिपटी वल्लरियों की उपमा दी है?
(i) अशोक
(ii) सहकार
(iii) शीशम
(iv) नीम
उत्तर:
(ii) सहकार
(छ) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
(I) वृक्ष की जड़ धरती की नरम-नरम मिट्टी में दबी हुई थी।
(II) पेड़ हरा-भरा और मजबूत था।
(III) पेड़ की छाया सघन नहीं थी।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन-से सही हैं?
(i) केवल III
(ii) केवल II
(iii) I और II
(iv) II और III
उत्तर:
(iii) I और II
(ज) पेड़ की सघन छाया में किसने प्राण पाए?
(i) पक्षियों ने
(ii) बटोहियों ने
(iii) तरुओं ने
(iv) पत्तियों ने
उत्तर:
(ii) बटोहियों ने
(झ) बादलों की फुहार से किसका सुख कई गुना बढ़ जाता?
(i) पंछियों का
(ii) पथिकों का
(iii) वल्लरियों का
(iv) वृक्ष का
उत्तर:
(iv) वृक्ष का
(ञ) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए उसके बाद दिए गए विकल्पों में से एक सही विकल्प चुनकर लिखिए।
कथन (A) : एक समय था जब पेड़ हरा-भरा और फल-फूल से लदा हुआ रहता था और पंछियों का आश्रय था।
कारण (R) पेड़ की नीड़ों में विश्राम करने वाले पंछी पेड़ की छतनार डाल से उड़ गए थे।
(i) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है।
(ii) कथन (A) गलत है लेकिन कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(iv) कथन (A) सही है लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है।
उत्तर:
(iv) कथन (A) सही है लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों में से किसी एक पद्यांश से संबंधित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चयन द्वारा दीजिए- (1 x 5 = 5)
जीवन एक कुआँ है
अथाह अगम
सबके लिए एक-सा वृत्ताकार !
जो भी पास जाता है,
सहज ही तृप्ति, शांति, जीवन पाता है!
मगर छिद्र होते हैं जिसके पात्र में,
रस्सी डोर रखने के बाद भी,
हर प्रयत्न करने के बाद भी-
वह यहाँ प्यासा-का- प्यासा रह जाता है।
मेरे मन! तूने भी, बार-बार
बड़ी-बड़ी रस्सियाँ बटीं
रोज-रोज कुएँ पर गया
तरह-तरह घड़े को चमकाया,
पानी में डुबाया, उतराया
लेकिन तू सदा ही
प्यासा गया, प्यासा ही आया !
और दोष तूने दिया
कभी तो कुएँ को
कभी पानी को
कभी सब को
मगर कभी जाँचा नहीं खुद को
परखा नहीं घड़े की तली को
चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को
और मूढ़! अब तो खुद को परख देख !
(क) काव्यांश में जीवन को कुआँ क्यों कहा गया है?
(i) क्योंकि जीवन भी कुएँ के समान अथाह और अगम है।
(ii) क्योंकि जीवन एक कुआँ है।
(iii) क्योंकि कुआँ जीवन है।
(iv) क्योंकि कुआँ जीवन के समान अथाह और अगम है।
उत्तर:
(i) क्योंकि जीवन भी कुएँ के समान अथाह और अगम है।
(ख) सभी प्रयासों के बाद भी कवि का मन प्यासा क्यों रह जाता है?
(i) क्योंकि उसकी प्यास नहीं बुझती है।
(ii) क्योंकि वह अपने दोषों और कमियों को नहीं देखता।
(iii) क्योंकि वह अपने दोषों और कमियों को देखता है।
(iv) क्योंकि वह प्यासा नहीं है।
उत्तर:
(ii) क्योंकि वह अपने दोषों और कमियों को नहीं देखता।
(ग) ‘अपनी असफलताओं के लिए हम दूसरों को दोषी मानते हैं’ भाव स्पष्ट करने वाली पंक्ति है-
(i) मगर कभी जाँचा नहीं खुद को परखा नहीं घड़े की तली को
(ii) चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को और मूढ़ ! अब तो खुद को परख देख !
(iii) और दोष तूने दिया, कभी तो कुएँ को कभी पानी को कभी सब को ।
(iv) तरह-तरह घड़े को चमकाया, पानी में डुबाया, उतराया।
उत्तर:
(iii) और दोष तूने दिया, कभी तो कुएँ को कभी पानी को कभी सब को ।
(घ) किसी को सफलता प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए?
(i) दूसरों की कमियों का निर्धारण
(ii) स्वमूल्यांकन
(iii) लक्ष्य निर्धारण
(iv) जीवन निर्धारण
उत्तर:
(ii) स्वमूल्यांकन
(ङ) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
(I) सामान्यतौर पर मनुष्य अपने अंदर की कमियों को तो देखता नहीं है और दूसरों पर उँगली उठाता है।
(II) संसार में ऐसे अनगिनत लोग हैं जो स्वयं तो परिश्रम करते नहीं है और अपनी असफलता का दोष दूसरों के सिर पर मढ़ देते हैं।
(III) लोग स्वयं को स्वयंसिद्ध मानते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही हैं?
(i) केवल I
(ii) केवल III
(iii) I और II
(iv) II और III
उत्तर:
(iii) I और II
अथवा
ले चल माँझी मझधार मुझे दे दे बस अब पतवार मुझे ।
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।
मत रोक मुझे भयभीत न कर, मैं सदा कंटीली राह चला।
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला ।
मैं हूँ अबाध, अविराम, अथक, बंधन मुझको स्वीकार नहीं।
मैं नहीं अरे ऐसा राही, जो बेबस-सा मन मार चलें ।
कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजराने घन की,
कब लुभा सकी मुझको बरबस, मधु-मस्त फुहारें सावन की।
फिर कहाँ डरा पाएगा यह, पगले जर्जर संसार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर, आता रह-रहकर प्यार मुझे ।
मैं हूँ अपने मन का राजा, इस पार रहूँ उस पार चलूँ
मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा, जी चाहे जीतें हार चलूँ।
जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे-
राहों को समझा लेता हूँ, सब बात सदा अपने मन की
इन उठती- गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे,
इन लहरों टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।
(क) ‘अपने मन का राजा’ होने के क्या लक्षण काव्यांश में बताया गया है?
(i) उसे हार जीत और किसी बंधन की परवाह नहीं है।
(ii) वह इस पार उस पार चलना चाहता है।
(iii) उसे लहरों से नहीं टकराना है।
(iv) वह आराम करना चाहता है।
उत्तर:
(i) उसे हार जीत और किसी बंधन की परवाह नहीं है।
(ख) कवि ने पतझड़ को क्या माना है?
(i) दुःख
(ii) निराशा
(iii) बसंत
(iv) हताशा
उत्तर:
(iii) बसंत
(ग) काव्यांश के अनुसार कवि का स्वभाव कैसा है?
(i) विपरीत परिस्थितियों में मार्ग बनाना
(ii) अनुकूल परिस्थितियों में मार्ग बनाना
(iii) साथ चलना
(iv) विश्राम करना
उत्तर:
(i) विपरीत परिस्थितियों में मार्ग बनाना
(घ) कवि को किस पर प्यार आता है?
(i) बंधनों पर
(ii) सावन की फुहारों पर
(iii) पतझड़ों पर
(iv) बाधाओं पर
उत्तर:
(iv) बाधाओं पर
(ङ) काव्यांश में कवि ने क्या सन्देश देने का प्रयास किया है?
(i) विपरीत दिशाओं से दूर होने का
(ii) जीवन पथ पर भयभीत न होने की सीख देना
(iii) मार्ग बदलने का
(iv) रुकावट से भागने का
उत्तर:
(ii) जीवन पथ पर भयभीत न होने की सीख देना
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए। (1 x 5 = 5)
(क) टी.वी. पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्वपूर्ण है-
(i) विजुअल
(iii) बाईट
(ii) नेट
(iv) सभी विकल्प सही हैं।
उत्तर:
(iv) सभी विकल्प सही हैं।
(ख) एंकर का रिपोर्टर से फोन पर बात करके सूचनाएँ
दर्शकों तक पहुँचाना कहलाता है-
(i) लाइव
(ii) एंकर बाईट
(iii) फोन-इन
(iv) पैकेज
उत्तर:
(iii) फोन-इन
(ग) इंट्रो, बॉडी और समापन प्रकार हैं-
(i) सीधा पिरामिड शैली
(ii) उल्टा पिरामिड शैली
(iii) समाचार लेखन
(iv) खबर लेखन
उत्तर:
(ii) उल्टा पिरामिड शैली
(घ) फीचर का मनोरंजनात्मक होने के साथ-साथ कैसा होना चाहिए?
(i) सूचनात्मक
(ii) विचारपरक
(iii) विवरणात्मक
(iv) कथनात्मक
उत्तर:
(i) सूचनात्मक
(ङ) कॉलम ‘क’ का कॉलम ‘ख’ से उचित मिलान कीजिए।
कॉलम ‘क’ | कोलम ‘ख’ |
(a) जाने-माने लोगों के निजी जीवन का उल्लेख | (I) अंशकालिक पत्रकार |
(b) कम शब्दों में बड़ी खबर का उल्लेख | (II) पेज थ्री पत्रकारिता |
(c) निश्चित मानदेय पर काम करने वाला | (III) राजस्थान पत्रिका |
(d) हिंदी के समाचार-पत्र | (IV) ब्रेकिंग न्यूज |
(i) (a)-(IV), (b)-(IIT), (c)-(I), (d)-(IIT)
(ii) (a)-(II), (b)-(IV), (c)-(I), (d)-(III)
(iii) (a)-(II), (b)-(I), (c)- (IV), (d)-(III)
(iv) (a)-(I), (b)-(II), (c)- (III), (d)-(IV)
उत्तर:
(ii) (a)-(II), (b)-(IV), (c)-(I), (d)-(III)
प्रश्न 4.
दिए गए काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए- (1 x 5 = 5)
किसबी, किसान कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
चाकर, चपला नट, चोर, चार, चेटकी ।
पेटको पढ़त, गुन गुढ़त, चढ़त गिरी,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी ।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही की पचित, बोचत बेटा-बेटकी ।।
‘तुलसी’ बुझाई एक राम घनस्याम ही लें,
आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी।।
(क) काव्यांश के अनुसार लोग अनैतिक कार्य क्यों कर रहे थे?
(i) पेट भरने के लिए
(ii) सुख कमाने के लिए
(iii) अनंत सुख के लिए
(iv) अथाह धन के लिए
उत्तर:
(i) पेट भरने के लिए
(ख) काव्यांश के अनुसार लोग मजबूरीवश क्या कर रहे थे?
(i) अपना कार्य
(ii) अपनी संतान को बेचना
(iii) धर्म सम्बन्धी कार्य करना
(iv) नीतिपरक विचार देना
उत्तर:
(ii) अपनी संतान को बेचना
(ग) काव्यांश की भाषा है-
(i) अवधी
(ii) ब्रजभाषा
(iii) संस्कृत
(iv) पाली
उत्तर:
(i) अवधी
(घ) कवि ने समाज के सभी लोगों का वर्णन क्यों किया है?
(i) क्योंकि वे सभी समाज में रहते हैं।
(ii) क्योंकि वे सभी एक ही वर्ग के हैं।
(iii) क्योंकि वे भूख और गरीबी से परेशान हैं।
(iv) क्योंकि वे कवि के साथ हैं।
उत्तर:
(iii) क्योंकि वे भूख और गरीबी से परेशान हैं।
(ङ) कवि के अनुसार पेट की आग को कौन बुझा सकता है?
(i) घनश्याम
(iii) कवि
(ii) तुलसी
(iv) समाज
उत्तर:
(i) घनश्याम
प्रश्न 5.
निम्नलिखित गद्यांश को प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए- (1 x 5 = 5)
एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत है। दुख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं, तब भी यह हजरत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पतिशास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमंडल से अपना रस खींचता है। जरूर खींचता होगा। नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल तंतुजाल और ऐसे सुकुमार कैंसर को कैसे उगा सकता था? अवधूतों के मुँह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं।
कबीर बहुत कुछ इस शिरीष के समान ही थे, मस्त और बेपरवाह, पर सरस और मादक। कालिदास भी जरूर अनासक्त योगी रहे होंगे। शिरीष के फूल फक्कड़ाना मस्ती से ही उपज सकते हैं और ‘मेघदूत’ का काव्य उसी प्रकार के अनासक्त अनाविल उन्मुक्त हृदय में उमड़ सकता है। जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?
(क) लेखक ने शिरीष को किसकी संज्ञा दी है?
(i) अवधूत की
(ii) उन्मुक्त हृदय की
(iii) सुकुमार केसर की
(iv) आसक्त की
उत्तर:
(i) अवधूत की
(ख) गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
(I) अवधूत को सांसारिक मोह नहीं होता और वह कठिन परिस्थिति में भी मस्ती से जीता है।
(II) जटिल परिस्थिति में रहकर ही अवधूत सरस रचना कर सकता है।
(III) आसक्त कवि फक्कड़पन में जीता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही हैं?
(i) केवल I
(ii) केवल III
(iii) I और II
(iv) II और III
उत्तर:
(iii) I और II
(ग) लेखक ने कालिदास को क्या संज्ञा दी है?
(i) अनासक्त योगी की
(ii) आसक्त योगी की
(iii) शिरीष के फूल की
(iv) वनस्पतिशास्त्र की
उत्तर:
(i) अनासक्त योगी की
(घ) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए उसके बाद दिए गए विकल्पों में से एक सही विकल्प चुनकर लिखिए।
कथन (A) : बाहरी सुख-दु:ख से दूर रहने वाला व्यक्ति ही अनासक्त अनाविल उन्मुक्त काव्य की रचना करने में सक्षम है।
कारण (R) मेघदूत की रचना कालिदास की फक्कड़ता का ही उदाहरण है।
(i) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है।
(ii) कथन (A) गलत है लेकिन कारण (R) सही
(iii) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(iv) कथन (A) सही है लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है।
उत्तर:
(i) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है।
(ङ) गद्यांश किस पाठ से उद्धृत है?
(i) भक्तिन
(ii) शिरीष के फूल
(iii) बाजार दर्शन
(iv) शिरीष और अवधूत
उत्तर:
(ii) शिरीष के फूल
प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर हेतु निर्देशानुसार सही विकल्प का चयन कीजिए।
(क) ‘जूझ’ पाठ के लेखक कौन हैं? (1 x 10 = 10)
(i) ओम थानवी
(ii) मनोहरश्याम जोशी
(iii) डॉ. आनंद यादव
(iv) प्रेमचंद
उत्तर:
(iii) डॉ. आनंद यादव
(ख) लेखक के पिता कोल्हू पहले क्यों चलाना चाहते थे?
(i) काम जल्दी खत्म करने के लिए
(ii) पैसा बचाने के लिए
(iii) लेखक को परेशान करने के लिए
(iv) ईख की अच्छी कीमत लेने के लिए
उत्तर:
(iv) ईख की अच्छी कीमत लेने के लिए
(ग) डॉ० आनंद यादव ने किसमें स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है?
(i) संस्कृत
(iii) पंजाबी
(ii) हिंदी
(iv) मराठी व संस्कृत
उत्तर:
(iv) मराठी व संस्कृत
(घ) यशोधर पंत द्वारा ‘नकली हँसी हँसने का क्या अर्थ है?
(i) घबरा जाना
(ii) स्वयं की गलती पहचानना
(iii) खुश होना
(iv) अपनी बात कहना
उत्तर:
(ii) स्वयं की गलती पहचानना
(ङ) किशनदा यशोधर बाबू को क्या मानते थे?
(i) अपना भाई
(ii) अपना मित्र
(iii) अपना सखा
(iv) मानस पुत्र
उत्तर:
(iv) मानस पुत्र
(च) यशोधर बाबू चाहते थे कि उनके बच्चे-
(i) पैदल दफ्तर जाएँ
(ii) पैसे खर्च करें
(iii) पूछ कर काम करें
(iv) अपना निर्णय स्वयं ले
उत्तर:
(iii) पूछ कर काम करें
(छ) सिन्धु घाटी सभ्यता में प्रशासन तन्त्र था-
(i) राज पोषित
(ii) समाज पोषित
(iii) धर्म पोषित
(iv) अर्थ पोषित
उत्तर:
(ii) समाज पोषित
(ज) मोहनजोदड़ो में घरों में खिड़कियाँ होती थी-
(i) दरवाजे के सामने
(ii) दूसरी मंजिल पर
(iii) दरवाजे के पीछे
(iv) नीचे तल्ले पर
उत्तर:
(ii) दूसरी मंजिल पर
(झ) यशोधर बाबू की पत्नी पति की अपेक्षा संतान की ओर अधिक पक्षपाती क्यों दिखाई देती हैं?
(i) क्योंकि युवावस्था में उन्होंने अपने मन को मारा था
(ii) क्योंकि बच्चे उन्हें अधिक प्यार करते थे।
(iii) क्योंकि वे यशोधर बाबू से घृणा करती थीं।
(iv) क्योंकि यशोधर बाबू के बच्चे उन्हें अधिक प्यार करते थे
उत्तर:
(i) क्योंकि युवावस्था में उन्होंने अपने मन को मारा था
(अ) सिंधु घाटी सभ्यता में पीने के पानी के कितने कुएँ हैं ?
(i) लगभग सात सौ
(ii) लगभग आठ सौ
(iii) लगभग छह सौ
(iv) लगभग तीन सौ
उत्तर:
(ii) लगभग आठ सौ
संड ‘ब”
वर्णनाल्मक प्रश्न (40 अंक)
प्रश्न 7.
दिए गए चार अप्रत्याशित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 120 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए। (6)
(क) आधुनिक जीवन शैली और तनाव
(ख) सबै दिन होत न एक समान
(ग) वृक्षारोपण का महत्व
(घ) जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि
उत्तर:
(क) आधुनिक जीवन शैली और तनाव:
विकास के उच्चतम स्तर पर पहुँचने के बाद भी मनुष्य की अधिक पाने की लालसा बढ़ती ही जा रही है। इस अधिक पाने की लालसा और उसे पाने अधिकाधिक प्रयास ने मनुष्य में तनाव को जन्म दे दिया है। यह हमारे दिमाग में हमेशा रहता है। कोई भी घटना तनाव का कारण नहीं होती बल्कि मनुष्य इससे कैसे प्रभावित होता है यह तनाव का कारण है। तनाव बहुत अच्छा हो सकता है, या नुकसान का कारण हो सकता है। यह उस बहती नदी के समान होता हैं जो बिना बाँध के बहुत विनाश करती है। तनाव आज हर घर में हर सदस्य में दिखाई देता है। तनाव हमारे लिए नया नहीं है। यह पहले भी होता था पर उस समय यह इतना अधिक नहीं होता था। आज मनुष्य छोटी-से-छोटी बात पर भी तनावयुक्त हो जाता है।
यह तनाव उस पर इस कदर हावी हो जाता है कि उसका परिवार भी इसकी चपेट में आ ज्ञाता है। स्वयं को अमर या सवांधिक सुखी करने की चाह में मनुष्य व साधनों का ध्यान नहीं रखता। मनुष्य थोड़े में अधिक पाने की प्रवृत्ति रखता है। जब ऐसा नहीं होता तब वह तनावग्रस्त हो जाता है। तनावग्रस्त मनुष्य निराशाजनक जीवन जीने लगता है और चिड्चिड़ा, गुस्सैल प्रवृत्ति का हो जाता है।
अतः मनुष्य को रचनात्मक ढंग से नए तरीके से व धैय से खुशी को दूँना चाहिए। बोड़े समय में अधिक पाने की इच्छा त्याग देना चाहिए। यदि वह अपनी मनोवृत्ति को सकारात्मक बनाएगा तभी वह सुखी रह पाएगा। मनुष्य का मस्तिष्क बहुत बड़ी भूमि के समान है यहाँ वह खुशी या तनाव उगा सकता है। दुभाँगय से यह मनुष्य का स्वभाव है कि अगर वह खुशी के बीज बोने की कोशिश न करे तो तनाव पैदा होता है। खुशी फसल हैं और तनाव घास-फूस है।
(ख) सबै दिन होत न एक समान:
व्यक्ति का जीवन संदैव एक जैसा नही रहता। सुख और दुःख का चक्र उसके जीवन में निरंतर चलता रहता है। इसका प्रमुख कारण समय की परिवर्तनशीलता है। अत: मानव जीवन के सभी दिन एक समान नहीं होते। परिस्थिति के अनुरूप उसमें परिवर्तन होता रहता है इसलिए अधिक सुख का न तो उसे घमंड करना चाहिए और न अधिक दुःख का विलाप। कुछ लोगों का स्वभाव होता है कि वे अपने सुख के दिनों में अपने मित्रों और परिचितों के साथ सामान्य व्यवहार नहीं करते पर सुख के पल बीतने पर जब उनका सामना वास्तविकता से होता है तो उनका समस्त गर्व नष्ट हो जाता है।
समाज में नित नवीन परिवर्तन देखने को मिलते हैं। हमारा इतिहास इसी का प्रमाण है। एक समय था जब भारत सोने की चिड्िया कहलाता था और एक समय वो भी आया जब यही सोने की चिड़िया दासता की जंजीचों में जकड़ती चली गई और आज फिर हम स्वतंत्र देश में जी रहे हैं। यह समय की परिवर्तनशीलता नहीं तो और क्या है। प्रगति की दौड़ में हम आज भी कई क्षेत्रों में बहुत आगे हैं तो कई क्षेत्रों में बहुत पीछे। समाज के हर क्षेत्र में परिवर्तन दिखाई दे रहा है। सामाजिक, धामिंक व राजनैतिक क्षेत्र में भारी उथल-पुथल हो रही है। समाज की एकता व अखंडता समाप्ति के कगार पर हैं। सामाजिक स्तर गिर रहा है। इस परिवर्तन से हमें निराश नहीं होना चाहिए।
बुरे दिनों में व्यक्ति को अधिक-से-अधिक सहानशील बनना चाहिए क्योंकि सहनशीलता से कष्टकारक दिन समाप्त हो जाते हैं। समय कभी एक सा नहीं रहता अत: समय बीतने पर कष्ट समाप्त हो जाता है और वाक्ति के बिगडे हुए काम बन जाते हैं। यह उक्ति संपन्न व सुखी व्यक्तियों के लिए थैर्य धारण करने का संदेश देती है। मनुष्य के हाथ में कार्य करना हैं। वह अपनी इच्छानुसार फल प्राप्त नहीं कर सकता। अत: उसे कायँ करते रहना चाहिए। व्यक्ति अपने जीवन के विषय में कुछ नहीं कह सकता। मनुष्य अभाव में भी कुछ पाने की कल्पना करता हुआ कर्ममय बन सकता है।
(ग) वृक्षारोपण का महत्व:
वृक्ष प्रकृति की अमूल्य संपदा है। मनुष्य और प्रकृति का संबंध अटूट और घनिष्ठ हे। मनुष्य ने इसी की गेद में अपने औखें खोली हैं और इस ने ही मनुष्य का पालन-पोषण किया है। वह पूर्णत: प्रकृति पर ही निर्धर है। उसका जीवन वृक्षों पर आश्रित है। वृक्षों से मनुष्य को फल-फूल, लकड़ी, जड़ी-बूटियाँ और औषधियाँ प्राप्त होती है। पेड़ हमें प्राणवायु देते है। वे वर्षा कराने में सहायक होते है और भूमि को उत्वरक बनाते हैं। ये अतिवृष्टि और अनावृष्टि आदि प्राकृतिक आपदाओं से हमारी रक्षा करते हैं।
मनुष्य जाति को बचाने के लिए हमें वृक्षों को बचाना आवश्यक है। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय वन नीति के अंतर्गत 50 लाख हेक्टेयर में वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा गया है वन वातावरण को शुद्ध करते है इस प्रकार चौड़ी पड्टी वाले पेंद्र वातावरण की धूल को रोक कर वायु को शुद्ध करते है। पशुओं के लिए हरा चारा और खाने के लिए इैधन भी यही उपलब्य कराते है।
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगिक इकाइयों के फलस्वरूप वनों का तीत्र गति से हास हुआ है। जो विश्व कल्याण के लिए अपेक्षित नहीं है। वृक्षारोपण का उद्रेश्य केवल वूक्षों लगाना ही नहीं अपितु उनकी समुचित देखभाल करना भी है। अतः इस ओर भावी पीद़ी को भी ध्यान देना चाहिए।
(घ) जहाँ न पहुँचे रवि वहौं पहुँचे कवि:
रवि और कवि कहते है कि सूर्य की किरणें जहाँ नहीं पहुँच पार्ती वहलँ कवि की कल्पना पहुँच जाती है। वह अपनी कल्पना-शक्रि का प्रयोग करके ऐसे स्थानों पर पहुँच जाता है जहाँ मनुष्य का पहुँचना असंभव है। कल्पना व्यक्ति की सोचने की शकि का विकास करती हैं इसलिए व्यक्ति को सदैव कल्पनाशील रहना चाहिए। हम अपने शरीर के द्वारा जहोँ नहीं पहुँच पाते है वहौँ पल भर में ही कल्पना के पंख लगा कर पहुँच जाते हैं परंतु कल्पना वही कर सकता है जिसमें जिजीविषा हो, जो दृद्निश्चयी हैं और जो सदैव क्रियाशील रहता है।
हमारी रचनात्मकता हमें कल्पना करने के लिए प्रेरित करती है। एक कवि की कलम में इतनी शक्हि होती है कि वह समाज में परिवर्तन एवं क्रांति दोनों ला सकता है। प्राचीन समय में महाकवि कालिदास ने मेघों को दूत बनाकर अपनी प्रिय के पास भेजा था, यह कवि की कल्पना-शक्हि का ही परिचायक है, आभुनिक कवियों में कवि निराला का प्रिय विषय बादल ही रहा है, कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने तो मेघों को अतिथि मानकर मेघ आए’ कविता की रचना कर डाली।
आकाशा में विद्यमान सूर्य की किरणें समस्त संसार को प्रकाशित एवं आलोकित करती है, पर कवि की कल्पना सूर्य की किरणों को पार करके आकाश की उस अंतिम सीमा को स्पर्श करती है जहाँ सूर्य का पहुँचना असंभव है अतः हमें सदैव कल्पनाशील रहना चहिए। हम जितना चिंतन और मनन करेंगे हमारी काल्पनिकशक्ति का विकास होता जाएगा। प्रत्येक इंसान में एक कवि छिपा होता है बस उस कवि हुदय को जाग्रत करने की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीजिए- (3 x 2 = 6)
(क) रेडियो नाटक की विशेषताएँ लिखिए।
(ख) विशेष लेखन में किसी भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए किन बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए?
(ग) विशेष लेखन की भाषा-शैली संबंधी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(क) रेडियो से प्रसारित होने वाले नाटक कहलाते हैं। हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के नाट्य आन्दोलन के विकास में रेडियो नाटक की भूमिका अहम रही है। रेडियो नाटक की विशेषताएँ निम्नलिखित है-
- रेडियो नाटक श्रव्य चाध्यम है।
- रेडियो नाटक की प्रस्तुति संवादों और vवनि प्रभावों के माध्यम से होती है।
- इसमें एकशन की कोई गुंजाइश नहीं होती।
- इसकी अवधि सीमित होती है इसलिए पात्रों की संख्या भी सीमित होती है।
- इसमें पात्र संबंधित सभी जानकारियाँ संवाद और ध्वनि संकेतों के माध्यम से ही उजागर होती है।
- कहानी केवल घटना प्रधान नहीं होती है बल्किक ध्वनि प्रधान होती है।
(ख) विशेष लेखन में किसी भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए-
- जिस विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते है उसमें आप की वास्तविक रूचि होनी चाहिए।
- अपनी रूचि के विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए उन विषयों से संबंधित पुस्तके पढ़नी चाहिए।
- विशेष लेखन के क्षेत्र में सक्रिय लोगों को स्वयं को अपडेट रखना चाहिए।
- उस विषय के प्रोफेशनल विशेषज्ञों के लेख और विश्लेषणों की कटिंग रखनी चाहिए।
- उस विषय में जितनी संभव हो उतनी संदभं सामश्री जुटाकर रखनी चाहिए।
- उस विषय का शब्दकोश अपने पास रखना चाहिए।
- विषय से जुड़े सरकारी और गैर सरकारी संगळनों और संस्थाओं की सूची, उनकी वेबसाइट का पता, कॉमन टेलीफोन नंबर और उसमें काम करने वाले विशेषजों के नाम आदि की जानकारी अपने पास रखनी चाहिए।
(ग) विशेष लेखन किसी विषय पर या जटिल एवं तकनीकी क्षेत्र से जुड़े विषयों पर किया जाता है, जिसकी अपनी विशेष शब्दावली होती है। इस शब्दावली से संवाददाता को अवश्य परिचित होना चाहिए जिससे विशेष लेखन करते समय उसे किसी भाषा रूपी समस्या से रूबरु ना होना पड़े। उसे इस तरह का लेखन करना चाहिए कि पाठक उस शब्दावली को समझ सके और उसे रिपोर्ट को समझने में परेशानी न हो।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगाभग 80 शब्दों में लिखिए। (4 x 2 = 8)
(क) ‘अच्छे काम पर बच्चों को करें प्रोत्साहित’ विषय पर लगभग 80 शब्दों में फीचर लेखन कीजिए।
(ख) ‘फुटपाथ पर सोते लोग’ विषय पर लगभग 80 शब्दों में फीचर लेखन कीजिए।
(ग) एडवोकेसी पत्रकारिता और वैकल्पिक पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर:
(क) हर मनुष्य अपने जीवन में कभी ना कभी कोई ना कोई गलती हमेशा करता है। मनुष्य का स्वभाव होती है कि वह अपनी गलतियों से ही सबक लेता है। इसका अर्थ हुआ कि गलती ही मनुष्य को अच्छे कार्य के लिए प्रजेरित करती है। जब बड़े गलती से प्रेरित होते हैं तो बच्चों को गलती करने पर क्यों हतोत्साहित किया जाता है। उन्हें भी गलती करने पर दोबारा अच्छे कार्य के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए इसके लिए आवश्यक है उन्हें प्रोत्साहित करना। यदि हम उन्हें प्रोत्साहित करेंगे तो वह भी बेहतर कार्य करने को उत्सुक सामान्यतः 2 वर्ष का बच्चा सीखने समझने के लिए तैयार रहता है और 5 वर्ष तक वह पूर्ण रूप से सीखने बोलने लायक हो जाता है। ऐसे माहॉल में यदि बच्चा गलती करता है तो उसे प्यार से समझाया जाए और उसे गलती ना करने के लिए योका ना जाए।
यदि ऐसा किया जाएगा तो वह बार-बार गलती नहीं करेगा। बच्चों को यह नहीं पता होता कि वह जो कर रहे हैं। वह सही है या गलत। जब तक उन्हें इसके बारे में नहीं बताया जाएगा तब तक उन्हें अपनी गलती पता नहीं चलेगी। यदि हम प्यार से दुलार से बच्चों को उनकी गलती के बारे में समझाएँ तो वह उसे दोबारा नहीं करेंगे और साथ ही साथ वे अपना काम करने के लिए सदा प्रेरित रहैंगे। बच्चों को अच्छे काम करने पर प्रोत्साहन मिलना चाहिए जिससे वे उस्साह पूर्वंक अपना काम संपन्न करें।
(ख) शहरों की आम समस्या है फुटपाथ पर सोते हुए लोग। जहँँ एक और महानगरों को विकास का आधार स्तंभ माना जाता है वहीं दूसरी ओर मानव मानव के बीच कितना अंतर है कि कुछ लोग तो धन, उद्योग, सत्ता आदि हर सुख भोगते है और कुछ लोग खाने के लिए भी तरस जाते है इसके अतिरिक्त गत्वां से शहर आने वाला एक वर्ग वह होता है जो खूब थन कमाने और अमीर बनने की चाह में गाँव को छेड़कर शटर आता है और वहाँ जब वास्तविकता से उसका सामना होता है तो वह फुटपाथ पर सोने के लिए मजबूर हो जाता है।
महंगाई गरबी आदि के कारण इन लोगों को एक समय का भोजन भी नसीब नहीं होता तो घर में रहना तो जैसे इनके लिए आसमान छो जैसा हो जाता है। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए वह जी तोड मेहनत करता है पर फिर भी कुछ स्वार्थी लोगों के द्वारा अक्सर है का शिकार हो जाता है। इसके लिए सरकारी नीतियाँ भी उतनी ही जिम्येदार हैं जितना मनुष्य खुद क्योंकि अनेक योजनाएँ तो भ्रष्टाचारियों के पेट भरने में ही चखत्म हो जाती है और गरीबअ व्यकित सुविधाओं की बाट जोड़ता रहता है और अंततः गरीबी में पैदा होकर उसमें ही पलता बढ़ता है और उसमें ही मर जाता है। फटे पुराने कपड़ों से अपना तन ढकता है, पानी पीकर पेट की आग बुझाता है और फुटपाथ या किसी भी जगह पर सो जाता है।
(ग) जो पत्रकारिता किसी विचारधारा या विशोष उद्देश्य को उटकर उसके पक्ष में जनमत बनाती है और लगातार जोर शोर से अभियान चलाती है, वह एहवोकेसी पत्रकारिता कहलाती है और जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसकी अनुकूल सोच को अधिव्यक्त करती है वह वैकल्पिक पत्रकारिता कहलाती है।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में लिखिए। (3 x 2 = 6)
(क) बार-बार पूछने पर भी अपाहिज अपने दुख के बारे में क्यों नहीं बताता ?
(ख) बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे ?
(ग) ‘शमशेर की कविता गाँव की सुबह का जीवंत चित्रण है।’-पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
(क) अकारण और अप्रासंतिक प्रश्न को सुनकर प्रश्नकताँ की नीयत को अपाहिज नहीं समझ पाता। उसका आग्रह देखकर वह संदेह से भर जाता है। वह स्वयं में इतना दुखी नहीं है जितना कि प्रश्नकर्ता समझता है। प्रश्नकर्ता के सवाल भी बेहूदा है इसलिए अपाहिज उनका जवाब देना युनास्षि नहीं समझता। जहाँ तक उसके दुखों का प्रश्न है वह कोई ताजा नहीं है जो वह उन्हे रो-रो कर बताएँ। अपने दुखों को उसने अपनी नियति मान कर स्थिति को स्वीकार कर सुख से जीना सीख लिया हैं।
वह अपने अपाहिजपन को बार-बार याद करना नहीं चाहता क्योंकि यदि वह इन्हें याद करता है तो उसे दुःख का अनुभव होता है। वह नहीं चाहता कि उसके दु:ख को जानकर लोग उससे झूठी सहानुभूति जताएँ। इस सब कारणों के कारण ही बार-बार पूछे जाने पर भी वह अपने दुचख को नहीं बताता क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसे प्रदर्शान की सामग्री बनाया जाए।
(ख) बच्चे से यहाँ आशय चिडियों के बच्यों से है। जब उनके मा-बाप भोजन की खोज में उन्हें छोड़कर दूर चले जाते हैं तो वे दिनभर मौँ-बाप के लॉटने की प्रतीक्षा करते है। शाम ढलते ही वे सोचते है कि हमारे माता-पिता हमारे लिए दाना, तिनका, लेकर आते ही होंगे। वे हमारे लिए भोजन लाएँगे। हमें ढेर सारा चुग्गा देंगे ताकि हमारा पेट भर सके। बच्चे आशावादी है। वे सुबह से लेकर शाम तक यही आशा करते हैं कि कब हमारे काता-पिता आएँ और हमें चुग्गा दें। वे विशेष आशा करते है कि हमें ढेर सारा खाने को मिलेगा साच ही हमें बहुत प्यार-दुलार भी मिलेगा।
(ग) कवि ने गॉँव की सुबह का सुंदर चित्रण करने के लिए गतिशील बिंब-योजना की है। भोर के समय आकाश नीले शंख की तरह पवित्र लगता है। रात की नमी के कारण उसे राख से लिपे चौके के समान बताया गया है। उषाकाल के आगमन में वह लाल केसर से भुले हुए सिल-सा लगता है। कवि दूसरी उपमा स्लेट पर लाल खडिया मलने से देता है। ये सारे उपमान ग्रामीण परिवेश से संबंधित हैं। आकाश के नीलेपन में जब सूर्य प्रकट होता है तो ऐसा लगता है जैसे नीले जल में किसी युवती का गोरा शरीर इिलमिला रहा है। सूय के उदय होते ही उपा का जादू समाप्त हो जाता है। ये सभी दूश्य एक-दूसरे से जुड़े हुए है। इनमें गतिशीलता है।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में लिखिए। (2 x 2 = 4)
(क) ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि ने अपने जीवन में किन परस्पर विरोधी बातों का सामंजस्य बिठाने की बात की है?
(ख) ‘पतंग’ कविता में चित्रित यादों के बीत जाने के बाद के प्राकृतिक परिवर्तनों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
(ग) स्त्री के प्रति तुलसी युग का दृष्टिकोण कैसा था?
उत्तर:
(क) इस कविता में, कवि ने अपने जीवन की अनेक विरोधी बातों का सामंजस्य बिटने की बात की है। कवि सांसारिक कठिनाइयों से जूझा रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह संसार की परवाह नहीं करता क्योंकि संसार अपने चहेतों का गुणगान करता है। उसे यह संसार अपूर्ण लगता है। वह अपने सपनों का संसार लिए फिरता है। वह यौवन का उन्माद व अवसाद साथ लिए रहता है। वह शीतल वाणी में आग लिए फिरता है।
(ख) भादों के महीने में तेज वषॉं होती है, बौधऐरं पह़ती है। बौछारें के जाते ही भादों का महीना समाप्त हो जाता है। इसके बाद क्वार (आश्विन) का महीना शुरू हो जाता है। इसके आते ही प्रकृति में कई तरह के परिवर्तन आते हैं। प्रकृति में चारों तरफ हरियाली है। सूर्य नया दिखाई देता है। आसमान नीला व साफ है। हवा तेज चलने लगी है। सूर्य की प्रात कालीन लालिमा बढ़ गई है।
(ग) तुलसी का युग स्तियों के लिए, बहुत कष्टदायी था। लोग रुीी का घोर अपमान करते थे। पैसों के लिए वे बेटी तक को बेच देते बे। इस काल में स्वियों का हर प्रकार से शोषण होता था। नारी के बारे में लोगें की थारणा संकुचित थी। नारी केवल भोग की वस्तु थी। इसी कारण उसकी दशा दयनीय थी। वह शोषण की चक्की में पिसती जा रही थी।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में लिखिए। (3 x 2 = 6)
(क) लछमिन के पैरों के पंख गाँव की सीमा में आते ही क्यों झड़ गए?
(ख) ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती है? नदियों का भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्व है?
उत्तर:
(क) लछमिन की सास का व्यवहार उसके प्रति सदा ही कहु रहा। उन्होंने कभी भी उससे प्रेमपूर्वक बात नहीं करी इसलिए जब उसने लछमिन को मायके यह कहकर भेजा कि “तुम बहुत दिन से मायके नहीं गई हो, जाओ देखकर आ जाओ” तो यह उसके लिए अप्रत्याशित था। उसके पैरों में जैसे पंख लग गए थे। जब वह खुशी-खुशी मायके के गौव की सीमा में पहुँची तो लोगों ने फूसफुसाना प्रारंभ कर दिया कि “हाय बेचारी लछमिन अब आई है। लोगों की नजरों से सहानुभूति इलक रही थी। वह कुछ समझ ही नहीं पा रही थी। उसे इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि उसके पिता की मूत्यु हो चुकी है या वे गंभीर बीमार थे। विमाता ने उसके साथ बड़ा अन्याय किया था। उन्होने पिता की बीमारी की खबर भी लछमिन तक नहीं पहुँचने दी इसलिए वह हतप्रभ थी। उसकी तमाम खुशी समाप्त हो गई।
(ख) ‘पहलवान की बोलक’ कहानी वर्तमान में आयुनिकता के साथ-साथ व्यवस्था के बदलने लोक-कला और इसके कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने को रेखांकित करती है। तत्कालीन राजा कुशती के शौकीन घे परन्तु उनकी मूत्यु के बाद विलायत से शिक्षा प्रापत कर लॉटे उनके पुत्रों ने सचा संभाली। अब एक नईं व्यवस्था जन्म ले चुकी थी। राजकुमारों ने मनोरंजन के साधन चें कुश्ती के स्थान पर घुझदौड को शामिल कर लिया। पुराने संबंध समाप्त कर दिए गए। पहलवानी जैसी लोककला को समाप्त कर दिया गया। यह ‘भारत’ पर ‘इंडिया’ के छा जाने का प्रतीक है। यह व्यवस्था लोक-कलाकार को भूखा मरने पर मजबूर कर देती है।
(ग) वर्षा न होने पर इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय बोलती है। इसका कारण यह है कि भारतीय जनमानस में गंगा, नदी को विशेष मान-सम्मान प्राप्त है। हर शुभ कार्य में गंगाजल का प्रयोग होता है। उसे ‘माँ’ का दर्जा मिला है। भारत के सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश में नदियों का बहुत महत्त्व है। देश के लगभग सभी प्रमुख बड़े नगर नदियों के किनारे बसे हुए हैं। इन्हीं के किनारे सभ्यता का विकास हुआ। अधिकतर धार्मिक व सांस्कृतिक केंद्र भी नदी-तट पर ही विकसित हुए हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी, आगरा आदि शहर नदियों के तट पर बसे हैं। धर्म से भी नदियों का प्रत्यक्ष संबंध है। नदियों के किनारों पर मेले लगते हैं। नदियों को मोक्षदायिनी माना जाता है।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में लिखिए। (2 x 2 = 4)
(क) लेखिका ने भक्तिन को समझदार क्यों माना है?
(ख) लेखक ने जाति-प्रथा की किन-किन बुराइयों का वर्णन किया है?
(ग) ‘बाजार दर्शन’ निबंध किस प्रकार का है?
उत्तर:
(क) भक्तिन ने लेखिका को समझदार इसलिए माना है क्योंकि भक्तिन अपना असली नाम बताकर स्वयं उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी। उसका मानना था कि यदि उसका वास्तविक नाम ‘ लक्ष्मी’ सबको पता लगेगा तो सब उसका उपहास करेंगे।
(ख) लेखक ने जाति-प्रथा की निम्नलिखित बुराइयों का वर्णन किया है-
- यह श्रमिक-विभाजन करती है।
- यह श्रमिकों में ऊँच-नीच का स्तर तय करती है।
- यह जन्म के आधार पर पेशा या व्यवसाय तय करती है।
- यह मनुष्य को सदैव एक ही व्यवसाय में बाँध देती है भले ही वह पेशा उसके लिए अनुपयुक्त व अपर्याप्त हो।
- यह संकट के समय पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती, चाहे व्यक्ति भूखा मर जाए।
- जाति-प्रथा के कारण थोपे गए व्यवसाय में व्यक्ति रुचि नहीं लेता।
(ग) निबंध प्रकार की दृष्टि से बाजार दर्शन को वर्णनात्मक निबंध कहा जा सकता है। निबंधकार ने हर स्थिति, घटाने का वर्णन किया है। प्रत्येक बात को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया है। वर्णनात्मकता के कारण निबंध में रोचकता और स्पष्टता दोनों आ गए हैं। वर्णनात्मक निबंध प्रायः उलझन पैदा करते हैं लेकिन इस निबंध में यह कमी नहीं है।?